एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी,

एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी, चोर ने छुरा दिखाकर कहा -"अगर तू शोर मचाएगी तो मैं तुझे मार डालूंगा|"

 महिला बड़ी भली थी वह बोली -"मैं शोर क्यों मचाऊंगी! तुमको मुझसे ज्यादा चीजों की जरूरत है| आओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगी|"

 उसके बाद उसने अलमारी का ताला खोल दिया और एक-एक कीमती चीज उसके सामने रखने लगी| चोर हक्का-बक्का होकर उसकी ओर देखने लगा| स्त्री ने कहा -"तुम्हें जो-जो चाहिए खुशी से ले जाओ, ये चीजें तुम्हारे काम आएंगी| मेरे पास तो बेकार पड़ी हैं|"

 थोड़ी देर में वह महिला देखती क्या है कि चोर की आंखों से आंसू टपक रहे हैं और वह बिना कुछ लिए चला गया| अगले दिन उस महिला को एक चिट्ठी मिली| उस चिट्ठी में लिखा था --

 'मुझे घृणा से डर नहीं लगता| कोई गालियां देता है तो उसका भी मुझ पर कोई असर नहीं होता| उन्हें सहते-सहते मेरा दिल पत्थर-सा हो गया है, पर मेरी प्यारी बहन, प्यार से मेरा दिल मोम हो जाता है| तुमने मुझ पर प्यार बरसाया| मैं उसे कभी नहीं भूल सकूंगा|'

महान समाज सेवक और प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे।

बहुत पुरानी बात है। बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर एक रेलगाड़ी आकर रुकी। गाड़ी में से एक आधुनिक नौजवान लड़का उतरा। लड़के के पास एक छोटा सा संदूक था।
 स्टेशन पर उतरते ही लड़के ने कुली को आवाज लगानी शुरू कर दी। वह एक छोटा स्टेशन था, जहाँ पर ज्यादा लोग नहीं उतरते थे, इसलिए वहाँ उस स्टेशन पर कुली नहीं थे। स्टेशन पर कुली न देख कर लड़का परेशान हो गया। इतने में एक अधेड़ उम्र का आदमी धोती-कुर्ता पहने हुए लड़के के पास से गुजरा। लड़के ने उसे ही कुली समझा और उसे सामान उठाने के लिए कहा। धोती-कुर्ता पहने हुए आदमी ने भी चुपचाप सन्दूक उठाया और आधुनिक नौजवान के पीछे चल पड़ा।

 घर पहुँचकर नौजवान ने कुली को पैसे देने चाहे। पर कुली ने पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया और नौजवान से कहा—‘‘धन्यवाद ! पैसों की मुझे जरूरत नहीं है, फिर भी अगर तुम देना चाहते हो, तो एक वचन दो कि आगे से तुम अपना सारा काम अपने हाथों ही करोगे। अपना काम अपने आप करने पर ही हम स्वावलम्बी बनेंगे और जिस देश का नौजवान स्वावलम्बी नहीं हो, वह देश कभी सुखी और समृद्धिशाली नहीं हो सकता।’’ धोती-कुर्ता पहने यह व्यक्ति स्वयं उस समय के महान समाज सेवक और प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे।

देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए।

 उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?'

 स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए…….. तो उनकी भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा

जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए…….. तो उनकी भगवा वस्त्र
 और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा: “आपका बाकी सामान
 कहाँ है ??”
 स्वामी जी बोले…. “बस यही सामान है“….
 तो कुछ लोगों ने व्यंग किया कि……. “अरे! यह
 कैसी संस्कृति है आपकी?
 तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है…….कोट –
 पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ??”
 स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए ओर बोले::
 “हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है….
 आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं……
 जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है।
 ॥ संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है ॥

हम धनवान होंगे या नहीं, यशस्वी होंगे या नहीं,

हम धनवान होंगे या नहीं, यशस्वी होंगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है परन्तु भैया ! हम मरेंगे या नहीं इसमें कोई शंका है? विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है, गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है परन्तु इस जीवन की गाड़ी के छूटने का कोई निश्चित समय है?
 आज तक आपने जगत का जो कुछ जाना है, जो कुछ प्राप्त किया है.... आज के बाद जो जानोगे और प्राप्त करोगे, प्यारे भैया ! वह सब मृत्यु के एक ही झटके में छूट जायेगा, जाना अनजाना हो जायेगा, प्राप्ति अप्राप्ति में बदल जायेगी |
 अतः सावधान हो जाओ | अन्तर्मुख होकर अपने अविचल आत्मा को, निजस्वरूप के अगाध आनन्द को, शाश्वत शांति को प्राप्त कर लो | फिर तो आप ही अविनाशी आत्मा हो |

 जागो.... उठो..... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ | सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो | आत्मा में अथाह सामर्थ्य है | अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हे ऊपर उठा सके | अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं जो तुम्हे दबा सके |

 सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी बिखरती रहती है | अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं | तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ और व्यवहार काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ | दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो | सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो | विचारवन्त और प्रसन्न रहो | जीवमात्र को अपना स्वरूप समझो | सबसे स्नेह रखो | दिल को व्यापक रखो | आत्मनिष्ठा में जगे हुए महापुरुषों के सत्संग तथा सत्साहित्य से जीवन की भक्ति और वेदान्त से पुष्ट तथा पुलकित करो |

एक महात्मा थे। उनका एक जवान शिष्य था।

एक महात्मा थे। उनका एक जवान शिष्य था। उस शिष्य को अपने ज्ञान और विद्वत्ता पर बड़ा घमंड था। महात्मा उसके इस घमंड को दूर करना चाहते थे। इसलिए एक दिन सवेरे ही वह उसे साथ लेकर यात्रा पर निकले।

 धूप चढ़ते दोनों एक खेत में पहुंचे। वहां एक किसान क्यारियां सींच रहा था। गुरु-शिष्य काफी देर तक वहां खड़े रहे, किन्तु किसान ने आंख उठाकर उनकी ओर देख तक नहीं। वह लगन से अपने काम में लगा रहा।

 दोपहर ढले वे एक नगर में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि एक लुहार लोहा पीट रहा है। पसीने से उसकी सारी देह तर-बतर हो रही थी। गुरु-शिष्य काफी देर वहां खड़े रहे, लेकिन लुहार को गर्दन ऊपर उठानी की भी फुरसत नहीं थी।

 गुरु-शिष्य फिर आगे बढ़े और दिन-छिपे के समय वे एक सराय में पहुंचे। वे थकान से चूर हो गये। वहां तीन मुसाफिर और बैठे थे। वे भी पूरी तरह थके हुए दिखाई पड़ते थे।गुरु ने शिष्य से कहा,"तुमने देखा, पाने के लिए कितना देना होता है। किसान तन-मन लुटाता है, तब कहीं खेत फलता है। लुहार शरीर सुख देता है तब धातु सिद्ध होती है। यात्री अपने को चुकाकर मंजिल पाता है। तुमने ज्ञान के पोथे-पर-पोथे रट डाले, लेकिन कितना ज्ञान पा लिया ? ज्ञान तो कमाई है। कमाकर उसे पाया जाता है। कर्मों से ज्ञान की क्यारियां सींचो। जीवन की आंच में ज्ञान की धातु सिद्ध करो। मार्ग में अपने को चुकाकर ज्ञान की मंजिल पाओ। ज्ञान किसी का सगा नहीं है।

 जो उसे कमाता है, उसी के पास वह जाता है।" —

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा

280 लाख करोड़ का सवाल है ...
 भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश
 कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है
 स्विस बैंक के
 डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के
 डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग
 280
 लाख करोड़ रुपये
 (280 ,00 ,000 ,000 ,000) उनके स्विस
 बैंक में जमा है. ये रकम
 इतनी है कि भारत का आने वाले 30
 सालों का बजट बिना टैक्स के
 बनाया जा सकता है.
 या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के
 अवसर दिए जा सकते है. या यूँ
 भी कह सकते है
 कि भारत के किसी भी गाँव से
 दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है.
 ऐसा भी कह
 सकते है कि 500 से
 ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण
 किये जा सकते है. ये रकम
 इतनी ज्यादा है कि अगर हर
 भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए
 जाये
 तो 60
 साल तक ख़त्म ना हो.
 यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक
 से लोन लेने कि कोई जरुरत
 नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट
 राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को
 लूटा है और ये लूट
 का सिलसिला अभी तक 2013 तक
 जारी है. इस सिलसिले को अब
 रोकना
 बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे
 भारत पर करीब
 200 सालो तक राज
 करके करीब 1 लाख
 करोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के
 केवल 65 सालों में हमारे
 भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक
 तरफ
 200
 साल में 1 लाख करोड़ है और
 दूसरी तरफ केवल 65
 सालों में 280 लाख करोड़ है.
 यानि हर साल लगभग 4.37 लाख
 करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़
 भारतीय
 मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट
 लोगों द्वारा जमा
 करवाई गई है. भारत
 को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन
 की कोई दरकार नहीं है. सोचो की
 कितना पैसा हमारे भ्रष्ट
 राजनेताओं और उच्च
 अधिकारीयों ने ब्लाक करके
 रखा हुआ
 है. हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट
 अधिकारीयों के खिलाफ जाने
 का पूर्ण अधिकार
 है.हाल ही में हुवे घोटालों का आप
 सभी को पता ही है - CWG
 घोटाला, २ जी
 स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ...
 और
 ना जाने कौन कौन से घोटाले
 अभी उजागर होने वाले है ........आप
 लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो.
 इसे भी इतना
 फॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे पढ़े ... और एक
 आन्दोलन बन जाये

पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर

पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता .
 पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता.
 तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है. उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.”
 और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया.

 बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे .
 लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”

 पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”
 ” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था, आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बना था , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गया और पिताजी सोचते रह गए .

 Friends , कई बार life की problems भी ऐसी ही होती हैं, सामने से देखने पर वो बड़ी भारी-भरकम लगती हैं , मानो उनसे पार पान असंभव ही हो , लेकिन जब हम उनका दूसरा पहलु देखते हैं तो वही problems आसान बन जाती हैं, इसलिए जब कभी आपके सामने कोई समस्या आये तो उसे सिर्फ एक नजरिये से देखने की बजाये अलग-अलग दृष्टिकोण से देखिये , क्या पता वो बिलकुल आसान बन जाएं!