कुछ शिष्य शिक्षा प्राप्त कर रहे थे

एक गुरुजी थे। उनके आश्रम में कुछ शिष्य
 शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। एक बार
 बातचीत में एक शिष्य ने पूछा -गुरुजी,
 क्या ईश्वर सचमुच है? गुरुजी ने कहा -
 ईश्वर अगर कहीं है तो वह हम सभी में है।
 शिष्य ने पूछा - तो क्या मुझमें और आपमें
 भी ईश्वर है?
 गुरुजी बोले - बेटा, मुझमें, तुममें, तुम्हारे
 सारे सहपाठियों में और हर जीव-जंतु में
 ईश्वर है। जिसमें जीवन है उसमें ईश्वर है।
 शिष्य ने गुरुजी की बात याद कर ली।
 कुछ दिनों बाद शिष्य जंगल में लकड़ी लेने
 गया। तभी सामने से एक हाथी बेकाबू
 होकर दौड़ता हुआ आता दिखाई दिया।
 हाथी के पीछे-पीछे महावत
 भी दौड़ता हुआ आ रहा था और दूर से
 ही चिल्ला रहा था - दूर हट जाना,
 हाथी बेकाबू हो गया है, दूर हट जाना रे
 भैया, हाथी बेकाबू हो गया है।
 उस जिज्ञासु शिष्य को छोड़कर
 बाकी सभी शिष्य तुरंत इधर-उधर भागने
 लगे। वह शिष्य अपनी जगह से बिल्कुल
 भी नहीं हिला, बल्कि उसने अपने दूसरे
 साथियों से कहा कि हाथी में भी भगवान
 है फिर तुम भाग क्यों रहे हो? महावत
 चिल्लाता रहा, पर वह शिष्य
 नहीं हटा और हाथी ने उसे धक्का देकर एक
 तरफ गिरा दिया और आगे निकल गया।
 गिरने से शिष्य होश खो बैठा।
 कुछ देर बाद उसे होश आया तो उसने
 देखा कि आश्रम में गुरुजी और शिष्य उसे
 घेरकर खड़े हैं। साथियों ने शिष्य से
 पूछा कि जब तुम देख रहे थे
 कि हाथी तुम्हारी तरफ दौड़ा चला आ
 रहा है तो तुम रस्ते से हटे क्यों नहीं?
 शिष्य ने कहा - जब गुरुजी ने कहा है
 कि हर चीज में ईश्वर है तो इसका मतलब है
 कि हाथी में भी है। मैंने सोचा कि सामने से
 हाथी नहीं ईश्वर चले आ रहे हैं और
 यही सोचकर मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा,
 पर ईश्वर ने मेरी कोई मदद नहीं की।
 गुरुजी ने यह सुना तो वे मुस्कुराए और बोले
 -बेटा, मैंने कहा था कि हर चीज में भगवान
 है। जब तुमने यह माना कि हाथी में
 भगवान है तो तुम्हें यह भी ध्यान
 रखना चाहिए था कि महावत में
 भी भगवान है और जब महावत चिल्लाकर
 तुम्हें सावधान कर रहा था तो तुमने
 उसकी बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
 शिष्य को उसकी बात का जवाब मिल
 गया था।.

शराब पीकर और मोबाइल पर बात करते समय वाहन ना चलायें ..........

its a story not true - 
मैं एक दुकान में खरीददारी कर रहा था, तभी मैंने उस दुकान
के कैशियर को एक ५-६ साल के लड़के से बात करते हुए देखा |
कैशियर बोला: "माफ़ करना बेटा, लेकिन इस गुड़िया को खरीदने
के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|" फिर उस छोटे-से लड़के
ने मेरी ओर मुड़ कर मुझसे पूछा ''अंकल, क्या आपको भी यही
लगता है कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?'' मैंने उसके पैसे गिने और
उससे कहा: "हाँ बेटे, यह सच है कि तुम्हारे पास इस गुड़िया को
खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं" | वह नन्हा-सा लड़का अभी भी
अपने हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ा था | मुझसे रहा नहीं गया |

इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे पूछा कि यह गुड़िया
वह किसे देना चाहता है? इस पर उसने उत्तर दिया कि यह वो
गुड़िया है - जो उसकी बहन को बहुत प्यारी है | और वह इसे,
उसके जन्मदिन के लिए उपहार में देना चाहता है | "यह गुड़िया
पहले मुझे मेरी मम्मी को देना है, जो कि बाद में जाकर मेरी
बहन को दे देंगी" | यह कहते-कहते उसकी आँखें नम हो आईं थीं |

"मेरी बहन भगवान के घर गयी है...और मेरे पापा कहते हैं कि
मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से मिलने जाने वाली हैं| तो,
मैंने सोचा कि क्यों ना वो इस गुड़िया को अपने साथ ले जाकर,
मेरी बहन को दे दें...|" मेरा दिल धक्क-सा रह गया था |
उसने ये सारी बातें एक साँस में ही कह डालीं और फिर मेरी ओर
देखकर बोला -"मैंने पापा से कह दिया है कि - मम्मी से कहना कि
वो अभी ना जाएँ| वो मेरा, दुकान से लौटने तक का इंतजार करें|

फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा-सा फोटो दिखाया, जिसमें वह
खिलखिला कर हँस रहा था | इसके बाद उसने मुझसे कहा
"मैं चाहता हूँ कि मेरी मम्मी, मेरा यह फोटो भी अपने साथ ले जायें,
ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए | मैं अपनी मम्मी से
बहुत प्यार करता हूँ और मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे
छोड़ने के लिए राजी होंगी, पर पापा कहते हैं कि उन्हें
मेरी छोटी बहन के साथ रहने के लिए जाना ही पड़ेगा |

इसके बाद फिर से उसने उस गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से,
खामोशी-से देखा| मेरे हाथ जल्दी से अपने बटुए ( पर्स )
तक पहुँचे, और मैंने उससे कहा "चलो एक बार और गिनती
करके देखते हैं कि तुम्हारे पास गुड़िया के लिए पर्याप्त पैसे हैं
या नहीं?'' उसने कहा: "ठीक है| पर मुझे लगता है मेरे पास पूरे पैसे हैं" |

इसके बाद मैंने उससे नजरें बचाकर कुछ पैसे उसमें जोड़ दिए,
और फिर हमने उन्हें गिनना शुरू किया | ये पैसे उसकी गुड़िया के
लिए काफी थे यही नहीं, कुछ पैसे अतिरिक्त बच भी गए थे |
नन्हे-से लड़के ने कहा: "भगवान् का लाख-लाख शुक्र है -
मुझे इतने सारे पैसे देने के लिए!” फिर उसने मेरी ओर देख
कर कहा कि "मैंने कल रात सोने से पहले भगवान् से प्रार्थना
की थी कि मुझे इस गुड़िया को खरीदने के लिए पैसे दे देना,
ताकि मम्मी इसे मेरी बहन को दे सकें | और भगवान् ने मेरी
बात सुन ली| इसके अलावा मुझे मम्मी के लिए एक सफ़ेद
गुलाब खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान् से इतने
ज्यादा पैसे मांगने की हिम्मत नहीं कर पाया था |

पर भगवान् ने तो मुझे इतने पैसे दे दिए हैं कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक
सफ़ेद गुलाब भी खरीद सकता हूँ ! मेरी मम्मी को सफेद गुलाब
बहुत पसंद हैं|" फिर हम वहा से निकल गए | मैं अपने दिमाग से
उस छोटे-से लड़के को निकाल नहीं पा रहा था | फिर, मुझे दो दिन
पहले स्थानीय समाचार पत्र में छपी एक घटना याद आ गयी ,
जिसमें एक शराबी ट्रक ड्राईवर के बारे में लिखा था | जिसने,
नशे की हालत में मोबाईल फोन पर बात करते हुए एक कार-चालक
महिला की कार को टक्कर मार दी थी,

जिसमें उसकी ३ साल की बेटी की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो
गयी थी और वह महिला कोमा में चली गयी थी|
अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार को ये लेना था कि,
उस महिला को जीवन-रक्षक मशीन पर बनाए रखना है अथवा नहीं?
क्योंकि वह कोमा से बाहर आकर, स्वस्थ हो सकने की अवस्था में नहीं थी |
क्या वह परिवार इसी छोटे-लड़के का ही था? मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |
मेरी उस नन्हे लड़के के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने
अखबार में पढ़ा कि उस महिला को बचाया नहीं जा सका |

मैं अपने आप को रोक नहीं सका, और अखबार में दिए पते पर जा पहुँचा,
जहाँ उस महिला को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था |
वह महिला श्वेत-धवल कपड़ों में थी - अपने हाथ में एक सफ़ेद
गुलाब और उस छोटे-से लड़के का वह फोटो लिए हुए|
और उसके सीने पर रखी हुई थी - वही गुड़िया |
मेरी आँखे नम हो गयी, मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा|
उस नन्हे-से लड़के का अपनी माँ और उसकी बहन के लिए जो प्यार था,
वह शब्दों में बयान करना मुश्किल है | और ऐसे में, एक शराबी
चालक ने अपनी घोर लापरवाही से, क्षण-भर में उस लड़के से
उसका सब कुछ छीन लिया था.............
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****************** इस कहानी से, सिर्फ और सिर्फ एक पैग़ाम देना चाहता हूँ :
कृपया - कभी भी शराब पीकर और मोबाइल पर बात करते समय वाहन ना
चलायें ..........

एक लड़के को बहुत क्रोध आता था।

एक 12-13 साल के लड़के को बहुत क्रोध
आता था।
उसके
पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब
भी उसे क्रोध आए वो घर केसामने लगे पेड़ में वह
कीलें
ठोंक दे।
पहले दिन लड़के ने पेड़ में 30 कीलें ठोंकी।
अगले कुछ
हफ्तों में उसे अपने क्रोध पर धीरे-धीरे नियंत्रण
करना आ गया।
अब वह पेड़ में प्रतिदिनइक्का-
दुक्का कीलें ही ठोंकता था।
उसे यह समझ में आ
गया था कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर
नियंत्रण करना आसान था।
एक दिन ऐसा भी आया जब उसने पेड़
में एक भी कील नहीं ठोंकी।
जब उसने अपने
पिता को यह बताया तो पिता ने उससे
कहा कि वह
सारी कीलों को पेड़ सेनिकाल दे।
लड़के ने बड़ी मेहनत करके जैसे-तैसे पेड़ से सारी कीलें
खींचकर निकाल दीं।
जब उसने अपने पिता को काम
पूरा हो जाने के बारे में बताया तो पिता बेटे
का हाथ थामकर उसे पेड़के पास लेकरगया। पिताने
पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा
– तुमने बहुत अच्छा काम
किया, मेरे बेटे, लेकिन पेड़ के तने पर बने
सैकडों कीलों के
इन निशानों को देखो।
अब यह पेड़ इतना खूबसूरत
नहीं रहा।
हर बार जब तुम क्रोध किया करते थे तब
इसी तरह के निशान दूसरोंके मन पर बन जाते थे।
अगर तुम किसी के पेट में छुरा घोंपकर बाद में
हजारों बार माफी मांग भीलो तब भी घाव
का निशान वहां हमेशा बनारहेगा।
अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा कृत्य न
करो जिसके लिए तुम्हें सदैव पछताना पड़े |
क्रोध को कमजोरी नहीं ताकत बनाओ.....!!

एकाग्रता का प्रभाव

एक बार स्वामी विवेकानंदजी मेरठ आये। उनको पढ़ने का खूब
शौक था। इसलिए वे अपने शिष्य अखंडानंद द्वारा पुस्तकालय में
से पुस्तकें पढ़ने के लिए मँगवाते थे। केवल एक ही दिन में पुस्तक
पढ़कर दूसरे दिन वापस करने के कारण ग्रन्थपाल क्रोधित
हो गया। उसने कहा कि रोज-रोज पुस्तकें बदलने में मुझे बहुत
तकलीफ होती है। आप ये पुस्तकें पढ़ते हैं कि केवल पन्ने
ही बदलते हैं?अखंडानंद ने यह बात स्वामी विवेकानंद
जी को बताई तो वे स्वयं पुस्तकालय में गये और ग्रंथपाल से
कहाः
ये सब पुस्तकें मैंने मँगवाई थीं, ये सब पुस्तकें मैंने पढ़ीं हैं। आप
मुझसे इन पुस्तकों में के कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं। ग्रंथपाल
को शंका थी कि पुस्तकें पढ़ने के लिए, समझने के लिए तो समय
चाहिए, इसलिए अपनी शंका के समाधान के लिए स्वामी विवेकानंद
जी से बहुत सारे प्रश्न पूछे। विवेकानंद जी ने प्रत्येक प्रश्न
का जवाब तो ठीक दिया ही, पर ये प्रश्न पुस्तक के कौन से पन्ने
पर हैं, वह भी तुरन्त बता दिया। तब
विवेकानंदजी की मेधावी स्मरणशक्ति देखकर ग्रंथपाल
आश्चर्यचकित हो गया और ऐसी स्मरणशक्ति का रहस्य पूछा।
स्वामी विवेकानंद ने कहाः पढ़ने के लिए ज़रुरी है एकाग्रता और
एकाग्रता के लिए ज़रूरी है ध्यान, इन्द्रियों का संयम

शक विश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन होता है

एक सेठ था. उसने एक नौकर रखा. रख तो लिया, पर उसे उसकी ईमानदारी पर विश्वास नहीं हुआ, उसने उसकी परीक्षा लेनी चाही.
 अगले दिन सेठ ने कमरे के फर्श पर एक रुपया डाल दिया. सफाई करते समय नौकर ने देखा. उसने रुपया उठाया और उसी समय सेठ के हवाले कर दिया.
 दूसरे दिन वह देखता है कि फर्श पर पांच रुपए का नोट पड़ा है. उसके मन में थोड़ा शक पैदा हुआ,
 हो-न-हो सेठ उसकी नीयत को परख रहा है. बात आई, पर उसने उसे तूल नहीं दिया.
 पिछली बार की तरह नोट उठाया और बिना कुछ कहे सेठ को सौंप दिया.

 वह घर में काम करता था, पर सेठ की निगाह बराबर उसका पीछा करती थी.
 मुश्किल में एक हफ्ता बीता होगा कि एक दिन उसे दस रुपए का नोट फर्श पर पड़ा मिला.
 उसे देखते ही उसके बदन में आग लग गई. उसने सफाई का काम वहीं छोड़ दिया और नोट को हाथ में लेकर सीधा सेठ के पास पहुंचा और बोला - "लो संभालो अपना नोट और घर में रखो अपनी नौकरी! तुम्हारे पास पैसा है, पर सेठ यह समझने के लिए कि अविश्वास से विश्वास नहीं पाया जा सकता, पैसे के अलावा कुछ और चाहिए. वह तुम्हारे पास नहीं है. मैं ऐसे घर मेँ काम नहीँ कर सकता!"
 सेठ उसका मुंह ताकता रह गया. वह कुछ कहता कि उससे पहले ही वह नौजवान घर से बाहर जा चुका था.

 सीख: िश्वास पर दुनिया कायम है, लेकिन शक विश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन होता है

एक समुराई जिसे उसके शौर्य ,इमानदारी और सज्जनता के लिए जाना जाता था ,

एक समुराई जिसे उसके शौर्य ,इमानदारी और सज्जनता के लिए जाना जाता था , एक जेन सन्यासी से सलाह लेने पहुंचा .

 जब सन्यासी ने ध्यान पूर्ण कर लिया तब समुराई ने उससे पूछा , “ मैं इतना हीन क्यों महसूस करता हूँ ? मैंने कितनी ही लड़ाइयाँ जीती हैं , कितने ही असहाय लोगों की मदद की है . पर जब मैं और लोगों को देखता हूँ तो लगता है कि मैं उनके सामने कुछ नहीं हूँ , मेरे जीवन का कोई महत्त्व ही नहीं है .”

 “रुको ; जब मैं पहले से एकत्रित हुए लोगों के प्रश्नों का उत्तर दे लूँगा तब तुमसे बात करूँगा .” , सन्यासी ने जवाब दिया .

 समुराई इंतज़ार करता रहा , शाम ढलने लगी और धीरे -धीरे सभी लोग वापस चले गए .

 “ क्या अब आपके पास मेरे लिए समय है ?” , समुराई ने सन्यासी से पूछा .

 सन्यासी ने इशारे से उसे अपने पीछे आने को कहा , चाँद की रौशनी में सबकुछ बड़ा शांत और सौम्य था , सारा वातावरण बड़ा ही मोहक प्रतीत हो रहा था .

 “ तुम चाँद को देख रहे हो , वो कितना खूबसूरत है ! वो सारी रात इसी तरह चमकता रहेगा , हमें शीतलता पहुंचाएगा , लेकिन कल सुबह फिर सूरज निकल जायेगा , और सूरज की रौशनी तो कहीं अधिक तेज होती है , उसी की वजह से हम दिन में खूबसूरत पेड़ों , पहाड़ों और पूरी प्रकृति को साफ़ –साफ़ देख पाते हैं , मैं तो कहूँगा कि चाँद की कोई ज़रुरत ही नहीं है….उसका अस्तित्व ही बेकार है !!”

 “ अरे ! ये आप क्या कह रहे हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है ”- समुराई बोला, “ चाँद और सूरज बिलकुल अलग -अलग हैं , दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है , आप इस तरह दोनों की तुलना नहीं कर सकते हैं .”, समुराई बोला.

 “तो इसका मतलब तुम्हे अपनी समस्या का हल पता है . हर इंसान दूसरे से अलग होता है , हर किसी की अपनी -अपनी खूबियाँ होती हैं , और वो अपने -अपने तरीके से इस दुनिया को लाभ पहुंचाता है ; बस यही प्रमुख है बाकि सब गौड़ है “, सन्यासी ने अपनी बात पूरी की.

 Friends, हमें भी खुद को दूसरों से compare नहीं करना चाहिए , अगर औरों के अन्दर कुछ qualities हैं तो हमारे अन्दर भी कई गुण हैं , पर शायद हम अपने गुणों को कम और दूसरों के गुणों को अधिक आंकते हैं , हकीकत तो ये है की हम सब unique हैं और सभी किसी न किसी रूप में special हैं .

चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते थे।

चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते
 थे।
 वहां अनेक लोग उनसे परामर्श और ज्ञान
 प्राप्त करने के लिए आते थे।
 जिस जंगल में वह रहते थे, वह पत्थरों और
 कंटीली झाडि़यों से भरा था।
 चूंकि उस समय प्राय: नंगे पैर रहने
 का ही चलन था,
 इसलिए उनके निवास तक पहुंचने में
 लोगों को अनेक
 कष्टों का सामना करना पड़ता था।
 वहां पहुंचते-पहुंचते लोगों के पांव लहूलुहान
 हो जाते थे।
 एक दिन कुछ लोग उस मार्ग से बेहद
 परेशानियों का सामना कर चाणक्य तक
 पहुंचे।
 एक व्यक्ति उनसे निवेदन करते हुए बोला,
 ‘आपके पास पहुंचने में हम लोगों को बहुत
 कष्ट हुआ। आप महाराज से कहकर
 यहां की जमीन को चमड़े से ढकवाने
 की व्यवस्था करा दें।
 इससे लोगों को आराम होगा।’
 उसकी बात सुनकर चाणक्य मुस्कराते हुए
 बोले,
 ‘महाशय, केवल यहीं चमड़ा बिछाने से
 समस्या हल नहीं होगी।
 कंटीले व पथरीले पथ तो इस विश्व में
 अनगिनत हैं।
 ऐसे में पूरे विश्व में
 चमड़ा बिछवाना तो असंभव है।
 हां, यदि आप लोग चमड़े द्वारा अपने
 पैरों को सुरक्षित कर लें
 तो अवश्य ही पथरीले पथ व
 कंटीली झाडि़यों के
 प्रकोप से बच सकते हैं।’ वह व्यक्ति सिर
 झुकाकर बोला,
 ‘हां गुरुजी, मैं अब ऐसा ही करूंगा।’
 इसके बाद चाणक्य बोले, ‘देखो, मेरी इस
 बात के पीछे भी गहरा सार है।
 दूसरों को सुधारने के बजाय खुद
 को सुधारो।
 इससे तुम अपने कार्य में विजय अवश्य
 हासिल कर लोगे।
 दुनिया को नसीहत देने वाला कुछ
 नहीं कर पाता
 जबकि उसका स्वयं पालन करने
 वाला कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंच
 जाता है।
 ’ इस बात से सभी सहमत हो गए।

"अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें...

एक आदमी ने देखा कि एक गरीब
 बच्चा उसकी कीमती कार
 को बड़े
 गौर से निहार रहा है ।
 आदमी ने उस लड़के को कार में
 बिठा लिया ।
 लड़के ने कहा:- आपकी कार बहुतअच्छी है,
 बहुत
 कीमती होगी ना ?
 .
 .
 आदमी:- हाँ, मेरे भाई ने मुझे गिफ्ट दी है
 ।
 .
 .
 लड़का (कुछ सोचते हुए):- वाह !
 आपके भाई कितने अच्छे हैं ।
 .
 .
 आदमी:- मुझे पता है तुम क्यासोच रहे हो..
 तुम भी ऐंसी कार चाहते हो ना ?
 .
 .
 लड़का:- नहीं !
 मैं आपके भाई की तरह बनना चाहता हूँ ।
 "अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें...
 दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा ऊँची

पवित्रता तो सेवा और श्रम से प्राप्त होती है।

एक बार गुरु गोविंद सिंह कहीं धर्म चर्चा कर रहे थे। श्रद्धालु भक्त उनकी धारा प्रवाह वाणी को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। चर्चा समाप्त होने पर गुरू गोविंद सिंह को प्यास लगी। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा- कोई पवित्र हाथों से मेरे पीने के लिए जल ले आए।

 गुरू गोविंद सिंह जी का कहना था कि एक शिष्य उठा और तत्काल ही चांदी के गिलास में जल ले आया। जल से भरे गिलास को उसने गुरु गोविंद सिंह जी की ओर बढ़ाते हुए कहा-लीजिए गुरुदेव! गुरु गोविंद सिंह जी ने जल का गिलास हाथ में लेते हुए उस शिष्य की हथेली की ओर देखा और बोले- वत्स, तुम्हारे हाथ बड़े कोमल हैं। गुरु के इन वचनों को अपनी प्रशंसा समझते हुए शिष्य को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने बड़े गर्व से कहा- गुरुदेव, मेरे हाथ इसलिए कोमल हैं क्योंकि मुझे अपने घर कोई काम नहीं करना पड़ता। मेरे घर बहुत सारे नौकर-चाकर हैं। वही मेरा और मेरे पूरे परिवार का सब काम कर देते हैं।

 गुरू गोविंद सिंह जी पानी के गिलास को अपने होठों से लगाने ही वाले थे कि उनका हाथ रुक गया। बड़े गंभीर स्वर में उन्होंने कहा- वत्स, जिस हाथ ने कभी कोई सेवा नहीं की, कभी कोई काम नहीं किया, मजदूरी से जो मजबूत नहीं हुआ और जिसकी हथेली में मेहनत करने से गांठ नहीं पड़ी, उस हाथ को पवित्र कैसे कहा जा सकता है। गुरुदेव कुछ देर रुके फिर बोले- पवित्रता तो सेवा और श्रम से प्राप्त होती है। इतना कह कर गुरुदेव ने पानी का गिलास नीचे रख दिया।

एक बार एक व्यापारी अपने ग्राहक को शहद बेच रहा था ! तभी अचानक

एक बार एक व्यापारी अपने ग्राहक को शहद बेच
 रहा था ! तभी अचानक
 व्यापारी के हाथ से फिसलकर शहद का बर्तन गिर
 गया ! बहुत सा
 शहद भूमि पर बिखर गया ! जितना शहद ऊपर -
 ऊपर से उठाया
 जा सकता था उतना व्यापारी ने उठा लिया !परन्तु
 कुछ शहद फिर भी
 ज़मीन पर गिरा रह गया !
 कुछ ही देर में बहुत सी माखियाँ उस ज़मीन पर गिरे
 है शहद
 पर आकर बैठ गयी ! मीठा -मीठा शहद उन्हे
 बड़ा अच्छा लगा ! वह
 जल्दी -जल्दी उससे चाटने लगी ! जब तक
 उनका पेट भर नहीं गया वह शहद चाटती रहीं !
 जब माखियो का पेट भर गया और उन्होने
 उड़ना चाह ,तो वह उड़ न सकी ! क्योंकि उनके
 पंख शहद में चिपक गए थे ! वह
 जितना छात्पटती उनके पंख उतने चिपकते जाते .
 उनके सारे शरीर में शहद लगता जाता !
 काफी माखियाँ शहद में लोटपोट हो कर मर गयी !
 बहुत सी माखियाँ पंख चिपकने से झात्पटती रही .
 परन्तु तब भी नयी माखियाँ शहद के लालच में
 वहां आती रहीं ! मरी और झात्पटती हुई
 माक्यियों को देख कर भी वह शहद खाने
 का लालच नहीं छोड़ पाई !
 माखियों की दूर्गात्ति और मूर्खता देख कर
 व्यापारी बोला - जो लोग जीभ के स्वाद नें पड़
 जाते है , वह उन माखियों के सामान ही मूरख होते
 हैं ! स्वाद के थोड़ी देर के सुख उठाने के लालच
 में वह अपने स्वास्थ्य को नष्ट कर देते हैं !
 रोगी बनकर तडपते हैं और जल्द ही मर जाते
 हैं !!!!!

माता पिता का एक छोटा सा पैगाम :- बेटे के नाम

माता पिता का एक छोटा सा पैगाम :- बेटे के नाम
1. जिस दिन तुम हमे बूढ़ा देखो तब सब्र करना और हमे
 समझने की कोशिश करना.
2. जब हम कोई बात भूल जाए तो हम पर
 गुस्सा ना करना और अपना बचपन याद करना.
3. जब हम बूढ़े होकर चल ना पाए
 तो हमारा सहारा बनना और अपना पहलाकदम याद करना.
4. जब हम बीमार हो जाए तो वो दिन याद करके हम
 पर अपने पैसे खर्च करना जब हम तुम्हारी ख्वाहिशे
 पूरी करने के लिए अपनी ख्वाहिशे कुर्बान करतेथे.
5. जब हमारे आँखों मे आँसू देखना तो वह दिन याद
 करना , जब तुम रोते थे , तो सीने से लगाकर चुप कराते थे ।
6. जब हम ठंड से ठिठुर रहें हो तो , और गुहार लगा रहें
 हों , तो बिना कोई देर किये हमारे ऊपर रजाई और
 कम्बल डालना ।
वह दिन याद करना जब ठंड के दिनों मे पैरों से रजाई
नीचे गिरा देते थे और ठंड लगने पर रोते थे , तो अपने कलेजे लगाकर फिररजाई ओढाते थे

दो मित्र थे।

दो मित्र थे।
 उन दोनो की आपस मेँ सगे भाई जैसी बनती थी।
 दोनो एक दुसरे के साथ ही खाली समय मेँ रहते थे।
 औफिस टाईम मेँ भी फेसबुक पे एक दुसरेके वाल पे नोक-झोंक मजाक करते रहते थे।
 किसी कारण दोनो मेँमनमुटाव हुआ।
 और दोस्ती टूट गई।
 फेसबुक पे भी एक ने दुसरे को ब्लॉक कर दिया।
 दो हफ्ते बाद एक दोस्त को दूसरे की काफी याद आई।
 उसने उसे फोन मिलाया।
 पर फोन नहीँ उठा।
 अगले दिन वो उसके घर गया,
 पर पता चला की दुसरा दोस्त हॉस्पीटल मेँ है।
 वो हॉस्पीटल गया।
 दोनो दोस्त गले लग कर खूब रोये।
 पता चला की बिमार दोस्त की जिंदगी अबगंभीर बिमारी से कूछ दिन की ही बची है।
 बिमार दोस्त ने उससे कहा-ः
 मेरे मरने के बाद भी फेसबुक पे तुम मेरे वाल पे 'मिस यू'रोज लिखना।
 वादा करके दोस्त अपने घर आया,
 फेसबुक पे अनब्लॉक करके बिमार दोस्त को दुबारा रिक्वेस्ट भेजा।
 पर बिमार दोस्त 'आईसीयू' मेँ था,फेसबूक पे रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीँ कर सकता था।
 सुबह पता चला की बिमार दोस्त दुनिया छोड़ गया।
 उसके बाद कभी भी वो मित्र अपने बिमार दोस्त की आई डी देखता है तो 'मिस यू'लिखने के लिये तड़प जाता है।
 नोट-ःजिन्दगी का कोई भरोसा नहीँ।
 बिंदास जीये,कभी दोस्ती मेँ मनमुटाव ना आने दे।
 समय की डोर पछताने का मौका तक नहीँ देती

देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”

सायंकाल का समय था |
सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे |
तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई
और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई |

इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान जैसा मेरI लड़का सबको दे |
उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें |

 इस पर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग
 का भीम कहते हें |

 इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे !
 मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें |

 यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली

 तो इतने में दूसरी ओरत ने
 कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ
 नहीं बोलना चाहती हो” |

 इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें |

 यह सुनकर चारो स्त्रियों ने
 मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी |

 तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया |
पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें | वह कितना सुरीला गान गा रहा हें |” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया |

 अब दूर जाने पर एक
 बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ | “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें |” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया |

 तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें |” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया |

 तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र
 था |

 वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और गाव कि और निकल पढ़ा |

 यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई | मानो उनको साप सुंघ गया हो | वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”

कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते

सम्राट चंद्रगुप्त ने एक दिन अपने
 प्रतिभाशाली मंत्री चाणक्य से कहा-
 “कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते।“
 चाणक्य ने उत्तर दिया,
 "महाराज रूप तो मृगतृष्णा है। आदमी की पहचान तो गुण
 और बुद्धि से ही होती है, रूप से नहीं।“
 “क्या कोई ऐसा उदाहरण है जहाँ गुण के सामने रूप
 फींका दिखे। चंद्रगुप्त ने पूछा।
 "ऐसे तो कई उदाहरण हैं महाराज, चाणक्य ने कहा,
 "पहले आप पानी पीकर मन को हल्का करें बाद में बात
 करेंगे।"
 फिर उन्होंने दो पानी के गिलास बारी बारी से
 राजा की ओर बढ़ा दिये।
 "महाराज पहले गिलास का पानी इस सोने के घड़े
 का था और दूसरे गिलास
 का पानी काली मिट्टी की उस मटकी का था। अब
 आप बताएँ, किस गिलास का पानी आपको मीठा और
 स्वादिष्ट लगा।"
 सम्राट ने जवाब दिया- "मटकी से भरे गिलास
 का पानी शीतल और स्वदिष्ट लगा एवं उससे
 तृप्ति भी मिली।"
 वहाँ उपस्थित महारानी ने मुस्कुराकर कहा,
 "महाराज हमारे प्रधानमंत्री ने बुद्धिचातुर्य से
 प्रश्न का उत्तर दे दिया। भला यह सोने का खूबसूरत
 घड़ा किस काम का जिसका पानी बेस्वाद लगता है।
 दूसरी ओर काली मिट्टी से बनी यह मटकी, जो कुरूप
 तो लगती है लेकिन उसमें गुण छिपे हैं। उसका शीतल
 सुस्वादु पानी पीकर मन तृप्त हो जाता है। अब आप
 ही बतला दें कि रूप बड़ा है अथवा गुण एवं बुद्धि?"

दो सहेलियाँ वर्षों बाद मिलीं. .

दो सहेलियाँ वर्षों बाद मिलीं. .
 औपचारिक कुशलक्षेम के बादएक ने
 दूसरी से पूछा..'कितने बच्चे हैं तुम्हारे ?
 'दो बेटियाँ हैं 'दूसरी ने हर्ष के साथ
 कहा .पहली सहेली ने चेहरे पर सिकन
 लाते हुए कहा -:'हे भगवान, इस जमाने में
 दो बेटियाँ. मेरेतो दो बेटे हैं.मुझे
 भी दो बार पता चला था गर्भ में
 बेटी है,मैंने तो छुटकारा पा लिया. . ..अब
 देखो कितनी निश्चिन्त हूँ. 'पहली ने
 कहा. 'काश, तीस वर्ष पहलेतेरी माँ ने
 भी तेरे जन्म से पहले ऐसा किया होतातब
 आज तू दो हत्याओं की दोषी न
 होती.तेरी माँ को एक ही ह्त्या का पाप
 लगता'.पास में खड़ी सहेली की इस बात
 पर घिग्गी बन्धगई ..!!उसके पास सर
 नीचे झुकाने के आलावा कोईचारा ना था ..!

एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे

शहर की मेन मार्केट में एक गराज था जिसे राकेश नाम का मैकेनिक चलाता था . वैसे तो राकेश एक अच्छा आदमी था लेकिन उसके अन्दर एक कमी थी , वो अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को छोटा समझता था .
 एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे. बातों -बातों में जब राकेश को पता चला की कस्टमर एक हार्ट सर्जन है तो उसने तुरन्त पूछा , “ डॉक्टर साहब मैं ये सोच रहा था की हम दोनों के काम एक जैसे हैं… !”
 “एक जैसे ! वो कैसे ?” , सर्जन ने थोडा अचरजसे पूछा .
 “देखिये राकेश कार के कौम्प्लिकेटेड इंजन पर काम करते हुए बोल, “ ये इंजन कार का दिल है , मैं चेक करता हूँ की ये कैसा चल रहा है , मैं इसे खोलता हूँ , इसके वाल्वस फिट करता हूँ , अच्छी तरह से सर्विसिंग कर के इसकी प्रोब्लम्स ख़तम करता हूँ और फिर वापस जोड़ देता हूँ …आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं ; क्यों ?”
 “हम्म ”, सर्जन ने हामी भरी .
 “तो ये बताइए की आपको मुझसे 10 गुना अधिक पैसे क्यों मिलते हैं, काम तो आप भी मेरे जैसा ही करते हैं ?”, राकेश ने खीजते हुए पूछा .
 सर्जन ने एक क्षण सोचा और मुस्कुराते हुए बोला , “ जो तुम कर रहे हो उसे चालू इंजन पे कर के देखो , समझ जाओगे

तो दुनिया का कोई इंसान भूखा नही रहता

बेटी ने आम खाकर गुठली और छिल्लका आँगन में
 फेंक दिया।
 मैंने देखा एक चींटी आम की तरफ
 चली आ रही है, आज चींटी भर पेट भोजन
 करेगी फिर सोचा कहीं ये इतना न खा ले
 कि पचा भी ना पाए।
 मगर ये क्या चींटी तो सिर्फ
 सूंघ कर चली गयी।
 बहुत आश्चर्य हुआ, कोई
 चींटी मीठा आम छोड़ कर कैसे जा सकती है?
 अरे!!!! ये क्या, अभी मैं ये सब विचारों के उधेड़-
 बुन में ही था कि मैंने देखा,
 बहुत सारी चींटियाँ पंक्तिबद्ध छिल्लके और
 गुठली की तरफ बढ़ रहीं थीं।
 अब मेरी समझ में आ गया था कि वो चींटी सिर्फ
 सूंघ कर क्यों चली गयी थी।
 काश, ऐसी सोच मनुष्य के मन में भी होती,
 तो दुनिया का कोई
 इंसान भूखा नही रहता

उस समय का इंतज़ार न करें कि भगवान हमें कंकड़ मारे फिर हम उससे संवाद करें

एक दिन एक सुपरवाइजर ने एक निर्माणाधीन इमरात की छठवीं मंज़िल से नीचे काम कर रहे मज़दूर को आवाज़ दी किन्तु चल रहे निर्माण के शोर में मज़दूर ने सुपरवाइजर की आवाज़ नहीं सुनी.

 तब सुपरवाइजर ने मज़दूर का ध्यान आकर्षित कराने के लिए एक 10 रुपये का नोट फेंका जो मज़दूर के सामने गिरा. मज़दूर ने वह् नोट उठा कर जेब में रख लिया और अपना काम में लग गया.

 इसके बाद सुपरवाइजर ने मज़दूर का फिर ध्यान आकर्षित कराने के लिए 50 रुपये का नोट फेंका. मज़दूर ने नोट उठाया, जेब में र्कहा और फिर अपने काम में लग गया.

 अबकी बार सुपरवाइजर ने मज़दूर का ध्यान आकर्षित कराने के लिए एक कंकड़ उठाया और फेंका जो कि ठीक मज़दूर के सिर पर लगा. इस बार मज़दूर ने सिर उठा कर देखा और सुपरवाइजर ने मज़दूर को अपनी बात समझाई.

 यह कहानी हमारी जिन्दगी जैसी है. भगवान ऊपर से हमें कुछ संदेश देना चाहता है पर हम हमारी दुनियादारी में व्यस्त रहते हैं.फिर भगवान हमें छोटे छोटे उपहार देता है और हम उन उपहारों को रख लेते हैं यह देखे बिना कि वे कहाँ से आ रहे हैं. हम भगवान को धन्यवाद नहीं देते हैं और कहते हैं कि हम भाग्यवान हैं.

 फिर भगवान हमें एक कंकड़ मारता है जिसे हम समस्या कहते हैं और फिर हम भगवान की ओर देखते हैं और संवाद कराने का प्रयास करते हैं.

 अतः जिन्दगी में हमें जब भी कुछ मिलें तो तुरंत भगवान को धन्यवाद देना न भूलें और उस समय का इंतज़ार न करें कि भगवान हमें कंकड़ मारे फिर हम उससे संवाद करें.
 एक चांडाल संतो के सत्संग के कारण ईश्वर की
 भक्ति में लिन रहने लगा ! एक दिन वह मन्दिर की
 ओर जां रहा था कि अचानक किसी ने उसे जकड़
 लिया ! उसने जकडने वाले से पूछा, तुम कौन हो
 और तुमने मुझे क्यों जकाडा है ? जकडने वाले ने
 जवाब दिया, मैं ब्रह्मराक्षस हूँ! तुम्हे खाकर अपनी
 भूख मिटाना चाहता हूँ ! चांडाल को पूजा के लिए
 जाना था, अत: उसने कहा, मेरा प्रतिदिन का नियम
 है कि मैं भगवान की संगीतमई प्रार्थना करता हूँ ! पहले
 मैं अपने आराध्य की उपासना करके लौट आऊ, फिर
 तुम मुझे खा लेना! ब्रह्मराक्षस ने उसे छोड् दिया! चांडाल
 ने भगवान के विग्रह के समक्ष नाच-गाकर कीर्तन किया!
 फिर उसने अपने एक मित्र से कहा, आज हमारी आखिरी
 भेंट है! मैं राक्षस की भूख मिटाने जा रहा हूँ! मित्र ने उसे
 समझाया कि तुम्हे ऐसा पागलपान नही करना चाहिये!
 चांडाल ने जवाब दिया, सत्य सबसे बड़ा धर्म है! मैंने
 ब्रह्मराक्षस को वापस लौटने का वचन दिया है, उसे अवश्य
 पूरा करूँगा! फिर राक्षस के पास लौटकर कहा, अब मुझे
 खा लो! राक्षस उसकी ईश्वर एव सत्य के प्रति निष्ठा देखकर
 दंग रह गया! उसने कहा, अगर तुम मुझे अपने पुण्य में से
 एक दिन का भी पुण्य दे दो, तो मेरे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे!
 चांडाल ने ऐसा ही किया और देखते ही देखते राक्षस की
 मुक्ति हो गयी!

अंग्रेजी भाषा और हिन्दी भाषा में सबसे बड़ा अंतर यही है की

अंग्रेजी भाषा और हिन्दी भाषा में सबसे बड़ा अंतर यही है की अंग्रेजी बोलने, लिखने पढने वालो का  मश्तिष्क उतना विकसित नहीं हो पाता है जितने की हिंदी में होता है,
 अंग्रेजो सीधी और बिना मात्राओं की भाषा है, पूर्ण रूप से आसान,
 हिंदी में टेढ़े मेरे घुमावदार अक्षर और मत्राए भी है, जिसके कारण व्यक्ति का मष्तिष्क पूर्ण रूप से गतिशील रहता है,
 संस्कृत भाषा में ये गति तीव्रतम होती है,
 इसलिए अमेरिका अब संस्कृत का दीवाना है,
 और चीन वालो ने भी हिंदी सिख ली है,

एक बार अब्दुल कलाम का interview लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा

एक बार अब्दुल कलाम का interview लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा गया. और उस सवाल के जवाब को ही मैं यहाँ बता रहा हूँ -

 सवाल: क्या आप हमें अपने व्यक्तिगत जीवन से कोई उदहरण दे सकते हैं कि हमें हार को किस तरह स्वीकार करना चाहिए? एक अच्छा LEADER हार को किस तरह फेस करता हैं ?

 अब्दुल कलाम: मैं आपको अपने जीवन का ही एक अनुभव सुनाता हूँ. 1973 में मुझे भारत के satellite launch program, जिसे SLV-3 भी कहा जाता हैं, का head बनाया गया ।

 हमारा Goal था की 1980 तक किसी भी तरह से हमारी Satellite ‘रोहिणी’ को अंतरिक्ष में भेज दिया जाए. जिसके लिए मुझे बहुत बड़ा बजट दिया गया और Human resource भी Available कराया गया, पर मुझे इस बात से भी अवगत कराया गया था की निश्चित समय तक हमें ये Goal पूरा करना ही हैं ।
 हजारों लोगों ने बहुत मेहनत की ।

 1979 तक- शायद अगस्त का महिना था- हमें लगा की अब हम पूरी तरह से तैयार हैं।

 Launch के दिन प्रोजेक्ट Director होने के नाते. मैं कंट्रोल रूम में Launch बटन दबाने के लिए गया ।

 Launch से 4 मिनट पहले Computer उन चीजों की List को जांचने लगा जो जरुरी थी. ताकि कोई कमी न रह जाए. और फिर कुछ देर बाद Computer ने Launch रोक दिया l वो बता रहा था की कुछ चीज़े आवश्यकता अनुसार सही स्तिथि पर नहीं हैं l

 मेरे साथ ही कुछ Experts भी थे. उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया की सब कुछ ठीक है, कोई गलती नहीं हुई हैं और फिर मैंने Computer के निर्देश को Bypass कर दिया । और राकेट Launch कर दिया.

 FIRST स्टेज तक सब कुछ ठीक रहा, पर सेकंड स्टेज तक गड़बड़ हो गयी. राकेट अंतरिक्ष में जाने के बजाय बंगाल की खाड़ी में जा गिरा । ये एक बहुत ही बड़ी असफ़लता थी ।

 उसी दिन, Indian Space Research Organisation (I.S.R.O.) के चेयरमैन प्रोफेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई ।

 प्रोफेसर धवन, जो की संस्था के प्रमुख थे. उन्होंने Mission की असफ़लता की सारी ज़िम्मेदारी खुद ले लीं. और कहा कि हमें कुछ और Technological उपायों की जरुरत थी । पूरी देश दुनिया की Media वहां मौजूद थी़ । उन्होंने कहा की अगले साल तक ये कार्य संपन्न हो ही जायेगा ।

 अगले साल जुलाई 1980 में हमने दोबारा कोशिश की । इस बार हम सफल हुए । पूरा देश गर्व महसूस कर रहा था ।

 इस बार भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गयी-

 प्रोफेसर धवन ने मुझे Side में बुलाया और कहा – ” इस बार तुम प्रेस कांफ्रेंस Conduct करो.”

 उस दिन मैंने एक बहुत ही जरुरी बात सीखी -

 जब असफ़लता आती हैं तो एक LEADER उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हैं
 और
 जब सफ़लता मिलती है तो वो उसे अपने साथियों के साथ बाँट देता हैं ।

कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं

एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं।
 जो शिष्य जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आए।
 अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए।किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास छह।
 गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते,गुरु का आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए।जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु केपास पहुंचे।
 गुरु ने कहा, 'यह सब मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था।
 जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगनेलगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पररहता होगा। यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके
 कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो। इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।'
 यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।

छोटे से गाँव में एक माँ - बाप और एक लड़की का गरीब परिवार रहता था

छोटे से गाँव में एक माँ - बाप और एक लड़की का गरीब परिवार रहता था .
 वह बड़ी मुश्किल से एक समय के खाने का गुज़ारा कर पाते थे .
 सुबह के खाने के लिए शाम को सोचना पड़ता था और शाम का खाना सुबह के लिए .
 एक दिन की बात है ,
 लड़की की माँ खूब परेशान होकर अपने पति को बोली की
 एक तो हमारा एक समय का खाना पूरा नहीं होता और बेटी साँप की तरह बड़ी होती जा रही है .
 गरीबी की हालत में इसकी शादी केसे करेंगे ?
 बाप भी विचार में पड़ गया .
 दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक फेसला किया की कल बेटी को मार कर गाड़ देंगे .
 दुसरे दिन का सूरज निकला ,
 माँ ने लड़की को खूब लाड प्यार किया , अचे से नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने लगी .
 यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे कही दूर भेज रहे हो क्या ?
 वर्ना आज तक आपने मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
 माँ केवल चुप रही और रोने लगी ,
 तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर आया ,
 माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप के साथ रवाना कर दिया .
 रस्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया ,
 बाप एक दम से निचे बेथ गया ,
 बेटी से देखा नहीं गया उसने तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध दिया .
 बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे
 बाप ने फावड़ा लेकर एक गढ़ा खोदने लगा बेटी सामने बेठे - बेठे देख रही थी ,
 थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप को पसीना आने लगा .
 बेटी बाप के पास गयी और पसीना पोछने के लिए अपनी चुनरी दी .
 बाप ने धक्का देकर बोला तू दूर जाकर बेठ।

 थोड़ी देर बाद जब बाप गडा खोदते - खोदते थक गया ,
 बेटी दूर से बैठे -बैठे देख रही थी,
 जब उसको लगा की पिताजी शायद थक गये तो पास आकर बोली
 पिताजी आप थक गये है .
 लाओ फावड़ा में खोद देती हु आप थोडा आराम कर लो .
 मुझसे आप की तकलीफ नहीं देखि जाती .
 यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले लगा लिया,
 उसकी आँखों में आंसू की नदिया बहने लगी ,
 उसका दिल पसीज गया ,
 बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह गढ़ा में तेरे लिए ही खोद रहा था .
 और तू मेरी चिंता करती है , अब जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे कलेजा का टुकड़ा बन कर रहेगी
 में खूब मेहनत करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा -
 सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट है ,
 बेटा - बेटी दोनों समान है ,
 उनका एक समान पालन करना हमारा फ़र्ज़ है

एक छोटा बच्चा था । बहुत ही नेक और

एक छोटा बच्चा था ।
 बहुत ही नेक और होशियार था । पढ़ने में भी काफी तेज था ..
 एक दिन वो मंदिर में गया ।
 मंदिर के अन्दर सभी भक्तो भगवान के दर्शन कर रहे थे और मंत्र बोल रहे थे । कुछ भक्त स्तुतिगान भी कर रहे थे । कुछ भक्त संस्कृत के काफी मुश्केल श्लोक भी बोल रहे थे।

 लड़के ने कुछ देर यह सब देखा और उसके चहेरे पर युही मायूशी छा गयी । क्युकी उसे यह सब प्राथना और मंत्र बोलना आता नहीं था ।
 कुछ देर वहा खड़ा रहा और कुछ उपाय खोजने लगा ।

 कुछ पल में ही लड़के के चहेरे पर मुस्कराहट छा गयी । उसने अपनी आँखे बंध की , अपने दोनों हाथ जोड़े और दश बार A-B-C-D बोलने लगा।
 मंदिर के पुजारी ने यह देखा उसने लड़के से पूछा की "बेटे तुम यह क्या कर रहे हो , लड़के ने पूरी बात बताई ।"
 पुजारी ने कहा की ” बेटे भगवान से इस तरह से प्राथना नहीं की जा सकती, तुम तो A-B-C-D बोल रहे हो ।”
 लड़के ने उत्तर दिया की ” मुझे प्रार्थना , मंत्र , भजन नहीं आते . मुझे सिर्फ A-B-C-D ही आती है . प्रार्थना , मंत्र ,भजन यह सब A-B-C-D से ही बनते है ।
 मैं दस बार A-B-C-D बोल गया हूँ । यह सब शब्द में से भगवान अपने लिए खुद प्राथना , मंत्र , भजन बना लेंगे ।
 लड़के की बात सुनकर पुजारी जी चुप हो गए । उनको अपनी भूल का एहसास हो गया । उन्होंने बच्चें को बहुत सारा प्रसाद दिया और एक प्रार्थना सिखा दी ।

मझदार में नाविक ने कहा, “नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो

नाव चली जा रही थी। बीच
 मझदार में नाविक ने कहा,
 “नाव में बोझ ज्यादा है, कोई
 एक आदमी कम हो जाए
 तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।” अब कम हो जए तो कौन कम
 हो जाए? कई लोग
 तो तैरना नहीं जानते थे:
 जो जानते थे उनके लिए नदी के
 बर्फीले पानी में तैर के
 जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग
 थे-,अफसर,वकील,,
 उद्योगपति,नेता जी और उनके
 सहयोगी के अलावा आम
 आदमी भी। सभी चाहते थे
 कि आम आदमी पानी में कूद जाए। उन्होंने आम आदमी से कूद जाने
 को कहा, तो उसने मना कर
 दिया। बोला, जब जब मैं आप लोगो से मदत
 को हाँथ फैलता हूँ कोई मेरी मदत
 नहीं करता जब तक मैं
 उसकी पूरी कीमत न चुका दूँ , मैं
 आप की बात भला क्यूँ मानूँ? “
 जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग
 नेता के पास गए, जो इन सबसे
 अलग एक तरफ बैठा हुआ था।
 इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने
 के बाद कहा,
 “आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर
 नदी में फेंक देंगे।” नेता ने कहा,
 “नहीं-नहीं ऐसा करना भूल
 होगी। आम आदमी के साथ
 अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे -
 नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ
 किया जिसमें राष्ट्र,देश, इतिहास,परम्परा की गाथा गा
 हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के
 आह्वान में हाथ ऊँचा करके कहा,
 ये नाव नहीं हमारा सम्मान डूब
 रहा है
 “हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे…
 नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे”…. सुनकर आम आदमी इतना जोश में
 आया कि वह नदी के बर्फीले
 पानी में कूद पड़ा। “दोस्तों पिछले 65 सालो से
 आम आदमी के साथ
 यही तो होता आया है "

जिनका नाम है प्रोफेसर धर्मपाल जी जिनका जीवन यूरोप में 40 वर्ष पढ़ाने में बीता

एक बहुत मशहूर प्रोफ़ेसर रहे हैं यूरोप में जिनका नाम है प्रोफेसर धर्मपाल जी जिनका जीवन यूरोप में 40 वर्ष पढ़ाने में बीता| भाई राजीव जी के वे परिचित थे| एक दिन भाई राजीव जी ने उनसे पूछा कि हमारे देश के युवा बाहर जाने को इतने लालायित क्यों रहते हैं और ऐसा क्या है विदेशों में जो हमारे यहाँ नहीं है? प्रोफेसर जी ने उत्तर दिया कि जब कोई जाति किसी दूसरी जाति को ठीक तरह से नहीं जानती होती तो वह या तो उससे आतंकित रहती है या प्रभावित रहती है| भारत के सन्दर्भ में, यहाँ की जाति पश्चिम से बुरी तरह प्रभावित है इसीलिए हर कोई चाहता है कि वह बाहर जा कर बस जाए लेकिन मूल में सच्चाई कुछ और ही होती है! इस पर भाई राजीव जी ने बाद में कई दस्तावेजों को लेकर अध्ययन किया और कुछ बातें उनकी समझ में आयीं| उन्होंने यूरोप के दार्शनिकों का अध्ययन किया और पता लगाया कि उनके दर्शन का यूरोप की सभ्यता पर क्या प्रभाव पड़ा| जब इन तथ्यों का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि ये तथ्य किसी भी भारतीय को बुरी तरह चौंका देने की क्षमता रखते हैं!

एक भिखारी भूख – प्यास से त्रस्त होकर आत्महत्या की योजना बना रहा था , तभी वहां

एक भिखारी भूख – प्यास से त्रस्त होकर आत्महत्या की योजना बना रहा था , तभी वहां सेएक नेत्रहीन महात्मा गुजरे | भिखारी ने उन्हें अपने मन की व्यथा सुनाई और कहा , ” मैं अपनी गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करना चाहता हूँ |” उसकी बात सुन महात्मा हँसे और बोले , “ठीक है, आत्महत्या करो लेकिन पहले अपनी एक आंख मुझे दे दो | मैं तुम्हे एक हज़ार अशरफिया दूंगा | ” भिखारी चोंका | उसने कहा , “आप कैसी बात करते हैं | मैं आंख कैसे देसकता हूँ |”
 महात्मा बोले, “आंख न सही , एक हाथ ही दे दो , मैं तुम्हे एक हज़ार अशरफिया दूंगा | ” भिखारी असमंजस में पड़ गया | महात्मा मुस्कराते हुए बोले, संसार में सबसे बड़ा धन निरोगी काया है | तुम्हारे हाथ-पाव ठीक है, शारीर स्वस्थ है, तुमसे बड़ा धनी और कौन हो सकता है | तुमसे गरीब तो में हूँ कि मेरी आँखें नहीं हैं मगर में तो कभी आत्महत्या के बारे में नहीं सोचता | भिखारी ने उनसे छमा मांगी और संकल्प किया कि वह कोई काम करके जीवन-यापन करेगा |

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमे लिखा था कि कल उनका एक साथी गुजर गया, जो उनकी तरक्की को रोक रहा था। कर्मचारियों को उसको श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया था।

 श्रद्धांजलि सभा कंपनी के मीटिंग हॉल में रखी गई थी। पहले तो लोगो को यह जानकर दुःख हुआ कि उनका एक साथी नही रहा, फिर वो उत्सुकता से सोचने लगे कि यह कौन हो सकता है? धीरे धीरे कर्मचारी हॉल में जमा होने लगे। सभी होंठो पर एक ही सवाल था! आख़िर वह कौन है, जो हमारी तरक्की की राह में बाधा बन रहा था।

 हॉल में दरी बिछी थी और दीवार से कुछ पहले एक परदा लगा हुआ था। वहां एक और सूचना लगी थी कि गुजरने वाले व्यक्ति की तस्वीर परदे के पीछे दीवार पर लगी है। सभी एक एक करके परदे के पीछे जाए, उसे श्रद्धांजलि दे और फिर तरक्की की राह में अपने कदम बदाये, क्योकि उनकी राह रोकने वाला अब चला गया। कर्मचारिओं के चेहरे पर हैरानी के भाव थे!कर्मचारी एक एक करके परदे के पीछे जाते और जब वे दीवार पर टंगी तस्वीर देखते, तो अवाक हो जाते। दरअसल, दीवार पर तस्वीर की जगह एक आइना टंगा था। उसके नीचे एक पर्ची लगी थी, जिसमे लिखा था "दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है, जो आपकी तरक्की को रोक सकता है, आपको सीमओं में बाँध सकता है! और वह आप ख़ुद है. "अपने नकारात्मक हिस्से को श्रद्धांजलि दे चुके 'नए' साथियो का स्वागत है.

एक हिरनी को नदी किनारे पानी पीते देख बहेलिये ने तीर चलाने की सोची। परन्तु

एक हिरनी को नदी किनारे पानी पीते देख बहेलिये ने तीर चलाने की सोची। परन्तु हिरनी बोल पड़ी, "ठहरो, तुम मुझे मारकर खा लेना पर पहले मुझे अपने बच्चों को प्यार कर उन्हें अपने पति के पास पहुँचा आने दो।"
 कुछ सोचकर बहेलिये ने हिरनी की बात मान ली। हिरनी ख़ुश होकर अपने बच्चों के पास आई, उन्हें प्यार किया और फिर पति को सारा क़िस्सा सुनाया। हिरन ने कहा, "तुम बच्चों को लेकर घर जावो और मैं बहेलिये के पास जाता हूँ।" हिरनी ने कहा, "यह कैसे हो सकता है? वचन में मैं बँधी हूँ, तुम नहीं।" यह सुन बच्चे बोले, "हम अकेले कहाँ रहेंगे।" अतः चारों बहेलिये के पास पहुँचे। उन सब को देख बहेलिये ने सोचा कि उसके हाथ लाटरी लग गई है।

 उधर हिरनी की बातें सियार ने सुन लीं थी। वह दौड़कर शेर के पास गया और सारा क़िस्सा बताकर बोला, "हज़ूर, आपका अन्न भंडार लूटा जा रहा है। चलिये, जल्दी कुछ करिये।"

 अतः जैसे ही बहेलिया हिरणों पर तीर चलाने को हुआ तो पीछे से झपटकर शेर ने उसे दबोच लिया। हिरनी अपने परिवार सहित जंगल में भाग खड़ी हुई।

 यह कथा वचन निभाने के महत्व को रेखांकित तो करती ही है पर यह भी बताती है कि सुजनों की रक्षा के लिये ईश्वर कभी-कभी दुर्जनों का भी उपयोग करते हैं। इसलिये सक्षम होकर भी ईश्वर दुर्जनों का संपूर्ण नाश नहीं करते।

एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी

एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।

 कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'

 सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'

 शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'

 उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।

 दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

समय बदल रहा है लोग बदल रहे है अब देश भी बदलेगा .

आज सब्जी खरीदने बाजार गया था .... वहां पर एक सज्जन ने एक सब्जी वाले के तराजू पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए .., उसे चोर घोषित कर दिया सब्जी वाले ने प्रतिउत्तर में तराजू का सही माप दिखाकर अपनी विश्वसनीयता साबित की और अंत में कहा :-

 "साहब अगर इस तरह पाई पाई का हिसाब कभी हमारे देश के नेताओं से मांग लिया होता .... तो आज आपको मुझ पर शक करने की जरुरत ही ना होती"

 वो सज्जन शांत और आवाक!!! एक सब्जी वाले के मुंह से ऐसी जागरूकता भरी बाते सुनकर शायद उन्हें अपने पाई पाई का हिसाब याद आ गया ...!!

 समय बदल रहा है लोग बदल रहे है अब देश भी बदलेगा ...!

अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें... दूसरों की अपेक्षाओं से

एक आदमी ने देखा कि एक गरीब बच्चा उसकी कीमती कार को बड़े गौर से निहार रहा है। आदमी ने उस लड़के को कार में बिठा लिया।

 लड़के ने कहा:- आपकी कार बहुत अच्छी है, बहुत कीमती होगी ना?
 आदमी:- हाँ, मेरे भाई ने मुझे गिफ्ट दी है।

 लड़का (कुछ सोचते हुए):- वाह ! आपके भाई कितने अच्छे हैं।
 आदमी:- मुझे पता है तुम क्या सोच रहे हो.. तुम भी ऐंसी कार चाहते हो ना?

 लड़का:- नहीं! मैं आपके भाई की तरह बनना चाहता हूँ।

 "अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें... दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा ऊँची"

51 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले अब्राहम लिंकन जब 22 वर्ष के थे

51 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले अब्राहम लिंकन जब 22 वर्ष के थे तब उन्हें ब्यापार में भारी असफलता का मुह देखना पड़ा था और जब उनकी उम्र 23 वर्ष की थी राजनीती में कदम रखते हुए बिधायक हेतु चुनाव लड़ा और हार गए,
और जब उनकी उम्र 24 वर्ष की थी तब एक बार पुन: ब्यापार में असफल हो गए और जब उनकी उम्र 26 वर्ष की थी तब उनकी पत्नी का देहांत हो गया अर्थात गृहस्थ जीवन की एक बड़ीहार थी लिंकन के लिए, और जब अब्राहम लिंकन की उम्र 27 वर्ष की थी तब उनका नर्वस ब्रेक डाउन हो गया
एक बार फिर लिंकन को स्वाथ्य धोखा दे गया था तब भी लिंकन ने स्वयं को टूटने नहीं दिया और जब उनकी उम्र 29 वर्ष की थी तब एक बार फिर उन्हें असफलता का स्वाद चखना पड़ा इस बार लिंकन स्पीकर का चुनाव हार गए थे और जब उनकी उम्र 31 वर्ष की थी तब एक और हार उनकी झोली मे आई इस बार लिंकन इलेक्टर का चुनाव हारे थे, लेकिन लिंकन ने स्वयं कभी हार नहीं मानी और एक बार लिंकन फिर चुनाव मैदान में थे और एक बार फिर हार का सामना उन्हें करना पड़ा इस बार
लिंकन अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव हार गए ,
इतना ही नहीं एक बार फिर लिंकन अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव हार गए
इस बार उनकी उम्र थी 39 वर्ष ,
और जब लिंकन की उम्र 46 वर्ष कि थी
तब एक बार फिर असफलता ने उन्हें तोडने का असफल प्रयास किया
और लिंकन सीनेट का चुनाव हार गए
लेकिन लिंकन नहीं टूटे,
क्योंकि एक और हार लिंकन के खाते में आनी बांकी थी तब उनकी उम्र थी 47 वर्ष और उपराष्ट्रपति के चुनाव में एक और हार ।
कर्मठ एवं द्रढ़ इच्छाशक्ति के धनी अब्राहम लिंकनने इतनी हारों के बावजूद भी कभी हार नहीं मानी तभी तो 51 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए ।
 "जो हिम्मत नहीं हारता वह सैकड़ों बार हारकर भी नहीं हारता ।"

अकबर की आँखे शर्म से झुक गई

सम्राट अकबर गया था शिकार को 'शाम
 हो गई ;नमाज का वक्त हो गया वो नमाज पढने
 लगा ,तभी एक स्त्री वहा से भागती हुई सम्राट
 को धक्का देती आगे निकली अकबर गिर
 गया लेकिन नमाज में बोले कैसे क्रोध तो बहुत
 आया ! एक तो कोई नमाज पढ़ रहा है उसके साथ
 ऐसा व्यवहार ! जल्दी जल्दी उसने नमाज
 पूरी की और उस स्त्री का पीछा ही करने
 की सोचता है ;लेकिन वो स्त्री खुद ही वापस
 लौट रही थी ; अकबर ने कहा पागल होश में है? मै
 नमाज पढ़ रहा था तूने मुझे धक्का दिया!
 इतना तो ख़याल होना चाहिए फ़क़ीर हो या गरीब
 कोई भी नमाज पढ़े तो सम्मान होना चाहिए ! प्रभु
 की प्रार्थना में जो लींन है उसके साथ
 एसा दुरव्यवहार ? मै सम्राट हूँ क्या ये
 भी दिखाई न पड़ा ' उस स्त्री ने झुक कर प्रणाम
 किया और कहा - मुझे माफ़ करे भूल हो गई
 क्यूँकि मेरा प्रेमी आज आने वाला था ,मै राह पर
 गांव के बाहर उसके स्वागत को गई थी !मुझे याद
 नही आपको कब धक्का लगा ,मुझे याद
 भी नही आप कब बीच में आये ! लेकिन सम्राट
 एक बात मुझे भी पुछनी है,मै साधारण प्रेमी से
 मिलने जा रही थी और ऐसी मगन थी मुझे आप
 दिखाई न पड़े और आप परमात्मा सेमिलने बैठे थे
 आपको मेरा धक्का मालूम हुआ ?
 मै आपको दिखाई
 पड़ी ? अकबर की आँखे शर्म से झुक गई

मां अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला, तो

एक मां अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला, तो वह रोने लगी और जोर-जोर से बच्चे का नामलेकर पुकारने लगी। कुछ समय बाद बच्चा दौड़ता हुआ उसके पास आ पहुंचा। मां ने पहले तो उसे गले से लगाया, जी भर कर लाड़ किया, फिर उसे डांटने लगी। उससे पूछा कि इतनी देर तक वह कहां छुपा हुआ था।बच्चे ने बताया, 'मां! मैं छुपा हुआ नहीं था, मैं तो बाहर की दुकान से गोंद लेनेगया था। मां ने पूछा कि गोंद से क्या करना है, तो बच्चा भोलेपन से बोला, मैं उससे चाय की प्याली जोडूंगा। वह टूट गई है।
मां ने आगे पूछा, टूटी प्याली जोड़ कर क्या करोगे?वह तो बहुत खराब दिखेगी। तबबच्चे ने भोलेपन से कहा, जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उसी कप में तुम्हें चाय पिलाया करूंगा। यह सुन कर मां पसीने-पसीने हो गई। कुछ पल तक तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे?
फिर होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया औरप्यार से कहा, बेटा! ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। देखो, तुम्हारे पापा कितनी मेहनत करते हैं ताकि तुम अच्छे स्कूल में जा सको। मम्मी तुम्हारे लिए तरह-तरह के भोजन बनाती है। सब लोग तुम्हारा ख्याल रखते हैं किताकि जब वे बूढ़े हो जाएं तो तुम उनका सहारा बनो........।
बच्चे ने मां की बात बीच में ही काटते हुए कहा, 'लेकिन मां! क्या दादा-दादी ने भी यही नहीं सोचा होगा, जब वे पापा को पढ़ाते होंगे? आज जब दादी से गलती से चाय का कप टूट गया तो तुमकितने जोर से चिल्लाई थीं। इतना गुस्सा किया था आपने कि दादा जी को आपसे दादी के लिए माफी मांगनी पड़ी। पता है मां, आप तो कमरे में जा कर सो गईं, लेकिन दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वहकप संभाल कर रख लिया है, और अब मैं उसे जोड़ दूंगा।

केवल पेट भरने के लिए जीवों की हिंसा मत कर

एक बार बुद्ध और उनके शिष्य घूमते-घामते कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक साँप को बहुत-सी चींटियाँ चिपककर काट रही थीं और साँप छटपटा रहा था।

 शिष्यों ने पूछाः "भंते ! इतनी सारी चींटियाँ इस एक साँप को चिपकर काट रही हैं और इतना बड़ा साँप इन चीटियों से परेशान होकर छटपटा रहा है, ऐसा क्यों? क्या यह अपने किन्हीं कर्मों का फल भोग रहा है?"

 बुद्धः "हाँ, कुछ साल पहले जब हम इस तालाब के पास से गुजर रहे थे, तब एक मछुआ मछलियाँ पकड़ रहा था। हमने उसे कहा भी था कि पापकर्म मत कर। केवल पेट भरने के लिए जीवों की हिंसा मत कर लेकिन उसने हमारी बात नहीं मानी। वही अभागा मछुआ साँप की योनि में जन्मा है और उसके द्वारा मारी हुई मछलियाँ ही चींटिया ही बनी हैं और वे अपना बदला ले रही हैं। मछुआ निर्दोष जीवों की हिंसा का फल भुगत रहा है।"

एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया

एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्‍धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्‍धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्‍याग आये थे। सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्‍त नही हुआ है किन्‍तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्‍या क्‍या छोड़ कर आये है ? सेठ जी ने बड़े उत्‍साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्‍याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्‍न दोबारा किया और सेठ जी का उत्‍तर वही था अन्‍तोगत्‍वा एक बार प्रश्‍न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है। बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्‍याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्‍यादा कर्त्तव्‍य बोध पर ध्‍यान देना चाहिए।-----

जिस देश का राजा जैसा होता है, उस देश की प्रजा भी वैसी ही हो जाती है

एक राजा था बहुत ही इमानदार ,किन्तु उसके राज्य में हर तरफ अशांति थी।
 राजा बहुत परेशान।
 उसने घोषणा करवाई कि जो मेरे राज्य को सही कर देगा उसे पांच लाख का इनाम दूंगा।
 सभी मंत्रियों ने कहा कि यह राशी बहुत कम है।
 राजा ने फिर घोषणा करवादी कि वह अपना आधा राज्य दे देगा। लेकिन कोई भी उसके राज्य को ठीक करने के लिए आगे नही आया।
 कुछ दिनों बाद एक सन्यासी आया और बोला- महाराज मै आपका राज्य ठीक कर दूंगा और मुझे पैसा भी नही चाहिए और आपका राज्य भी नही चाहिए। पर आपको मेरी एक शर्त माननी होगी कि किसी भी शिकायत पर मै जो फैसला करूंगा आपको वो मानना होगा।
 राजा ने शर्त मान ली।
 अब सन्यासी ने राजा से कहलवाकर राज्य भर से शिकायत मंगवाई।
 राजा के पास टोकरे के टोकरे भर भर कर शिकायत आने लगी। जब शिकायत आनी बंद हो गयी तो सन्यासी ने राजा को किसी एक पर्ची को उठाने को कहा।
 जब राजा ने एक पर्ची उठा कर उसकी शिकायत पढ़ी तो वह सन्न रह गया।
 उसमे लिखा था - मै एक गरीब किसान हूँ और राजा का लड़का मेरी लडकी को छेड़ता है, अब मै किसके पास शिकायत लेकर जाऊ।
 यह सुनकर उस सन्यासी ने कहा- राजा तू अपने लडके को कल jail me dal doo .
 राजा के यह सुनकर आशू आ गये क्योकि वह उसका इकलोता लड़का था और ऐसा करने से मना किया।
 सन्यासी ने राजा को कहा कि तुमने मुझे कहा था कि तुम मेरी शर्त मानोगे।
 फिर राजा ने वैसा ही किया और दूसरे दिन अपने बेटे को jail me daal diya
 इसके बाद राजा ने सन्यासी से कहा कि क्या दूसरी पर्ची उठाऊ?
 सन्यासी ने कहा- राजन अब किसी पर्ची को उठाने की जरूरत नही । इन सब में अब तुम आग लगा दो।
 जिस देश का राजा एक शिकायत मिलने पर अपने बेटे को jail me daal sakta hai उस देश में कोई भी अब अपराध करने का साहस नही कर सकता।
 और सच में उस राजा का राज्य बिलकुल सही हो गया।
 किसी ने सच ही कहा है जिस देश का राजा जैसा होता है, उस देश की प्रजा भी वैसी ही हो जाती है।

एक बार किसी गुरु से उसके शिष्य ने पूछा मैं जानना चाहता हुं कि

एक बार किसी गुरु से उसके शिष्य ने पूछा मैं जानना चाहता हुं कि स्वर्ग व नरक कैसे हैं? उसे गुरु ने कहा आंखे बंद करों और देखों। शिष्य ने आंखे बंद की और शांत शुन्यता में चला गया। गुरु ने कहा अब स्वर्ग देखों और थोड़ी देर बाद कहा अब नर्क देखों। उसके थोड़ी देर बाद गुरु ने पूछा- क्या देखा? वह बोला स्वर्ग में मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा जिसकी लोग चर्चा करते हैं न ही अमृत की नदियां, न स्वर्ण भवन और न ही अप्सराएं। वहां तो कुछ भी नहीं था और नर्क में भी कुछ भी नहीं था न अग्रि की ज्वालाएं, न पीडि़तों का रूदन कुछ भी नहीं।शिष्य ने पूछा- इसका क्या कारण है? मैंने स्वर्ग देखा या नहीं देखा? गुरु हंसे और बोले- निश्चय ही तुमने स्वर्ग और नर्क देखे हैं लेकिन अमृत की नदियां, अप्सराएं, स्वर्ण भवन, पीड़ा व रूदन तुझे स्वयं वहां ले जाने होंगे। वे वहां नहीं मिलते जो हम अपने साथ ले जाते हैं वही वहां उपलब्ध हो जाता हैं। हम ही स्वर्ग हैं, हम ही नर्क । व्यक्ति जो अपने अंदर रखता है, वही अपने बाहर पाता है। भीतर स्वर्ग है तो बाहर स्वर्ग है और भीतर नर्क हो तो बाहर नर्क है। स्वयं में ही सब कुछ छुपा है।

महर्षि वेदव्यास किसी नगर से गुजर रहे थे

महर्षि वेदव्यास किसी नगर से गुजर रहे थे। उन्होंने एक कीड़े को तेजी से भागते हुए देखा। मन में सवाल उठा- एक छोटा सा कीड़ा इतनी तेजी से क्यों भागा जा रहा है?
 उन्होंने कीड़े से पूछा- ऐ क्षुद्र जंतु! तुम इतनी तेजी से कहां जा रहे हो?
 कीड़ा बोला- हे महर्षि, आप तो इतनेज्ञानी हैं, यहां क्षुद्र कौन और महान कौन? क्या इनकी सही-सही परिभाषा संभव है?
 महर्षि सकपकाए। फिर सवाल किया- अच्छा बताओ कि तुम इतनी तेजी से कहां भागे जा रहे हो?
 इस पर कीड़े ने कहा-अरे! मैं तो अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा हूं। देख नहीं रहे कि पीछे कितनी तेजी से बैलगाड़ी चली आ रही है।
 कीडे़ के उत्तर ने महर्षि को फिर चौंकाया।
 वह बोले- पर तुम तो इस कीट योनि में पड़े हो। यदि मर गए तो तुम्हें दूसरा और अच्छा शरीर मिलेगा।
 इस पर कीड़ा बोला- महर्षि! मैं तो कीड़े की योनि में रहकर कीड़े का आचरण कर रहा हूं, पर ऐसे प्राणी बहुत हैं जिन्हें विधाता ने शरीर तो मनुष्य का दिया है, पर वे मुझ कीड़े से भी गया-गुजरा आचरण कर रहे हैं।
 महर्षि उस नन्हे से जीव के कथन पर सोचते रहे, फिर उन्होंने उससे कहा- चलो, हम तुम्हारी सहायता कर देते हैं।
 कीड़े ने पूछा- किस तरह की सहायता?
 महर्षि बोले-तुम्हें उठाकर मैं आने वाली बैलगाड़ी से दूर पहुंचा देता हूं।
 इस पर कीड़े ने कहा- धन्यवाद! श्रमरहित पराश्रित जीवन विकास केसारे द्वार बंद कर देता है। मुझे स्वयं ही संघर्ष करने दीजिए।
 महर्षि को कोई जवाब न सूझा!!

मैं आप लोगों को एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ।



शिकागो वक्तृता: हमारे मतभेद का कारण - 15 सित. 1893

मैं आप लोगों को एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ। अभी जिन वाग्मी वक्तामहोदय ने व्याख्यान समाप्त किया हैं, उनके इस वचन को आप ने सुना हैं कि ' आओ, हम लोग एक दूसरे को बुरा कहना बंद कर दें', और उन्हे इस बात का बड़ा खेद हैं कि लोगों में सदा इतना मतभेद क्यों रहता हैं ।

परन्तु मैं समझता हूँ कि जो कहानी मैं सुनाने वाला हूँ, उससे आप लोगों को इस मतभेद का कारण स्पष्ट हो जाएगा । एक कुएँ में बहुत समय से एक मेढ़क रहता था । वह वहीं पैदा हुआ था और वहीं उसका पालन-पोषण हुआ, पर फिर भी वह मेढ़क छोटा ही था । धीरे- धीरे यह मेढ़क उसी कुएँ में रहते रहते मोटा और चिकना हो गया । अब एक दिन एक दूसरा मेढ़क, जो समुद्र में रहता था, वहाँ आया और कुएँ में गिर पड़ा ।

"
तुम कहाँ से आये हो?"

"
मैं समुद्र से आया हूँ।" "समुद्र! भला कितना बड़ा हैं वह? क्या वह भी इतना ही बड़ा हैं, जितना मेरा यह कुआँ?" और यह कहते हुए उसने कुएँ में एक किनारे से दूसरे किनारे तक छलाँग मारी। समुद्र वाले मेढ़क ने कहा, "मेरे मित्र! भला, सुमद्र की तुलना इस छोटे से कुएँ से किस प्रकार कर सकते हो?" तब उस कुएँ वाले मेढ़क ने दूसरी छलाँग मारी और पूछा, "तो क्या तुम्हारा समुद्र इतना बड़ा हैं?" समुद्र वाले मेढ़क ने कहा, "तुम कैसी बेवकूफी की बात कर रहे हो! क्या समुद्र की तुलना तुम्हारे कुएँ से हो सकती हैं?" अब तो कुएँवाले मेढ़क ने कहा, "जा, जा! मेरे कुएँ से बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता। संसार में इससे बड़ा और कुछ नहीं हैं! झूठा कहीं का? अरे, इसे बाहर निकाल दो।"
यही कठिनाई सदैव रही हैं।

मैं हिन्दू हूँ। मैं अपने क्षुद्र कुएँ में बैठा यही समझता हूँ कि मेरा कुआँ ही संपूर्ण संसार हैं। ईसाई भी अपने क्षुद्र कुएँ में बैठे हुए यही समझता हूँ कि सारा संसार उसी के कुएँ में हैं। और मुसलमान भी अपने क्षुद्र कुएँ में बैठा हुए उसी को सारा ब्रह्माण्डमानता हैं। मैं आप अमेरिकावालों को धन्य कहता हूँ, क्योकि आप हम लोगों के इनछोटे छोटे संसारों की क्षुद्र सीमाओं को तोड़ने का महान् प्रयत्न कर रहे हैं, और मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में परमात्मा आपके इस उद्योग में सहायता देकर आपका मनोरथ पूर्ण करेंगे ।

अमेरिकावासी बहनो तथा भाईयो,



अमेरिकावासी बहनो तथा भाईयो,

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सब से प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान् जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं। भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

- ' जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।'
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।
- ' जो कोई मेरी ओर आता हैं - चाहे किसी प्रकार से हो - मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।'
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता । पर अब उनका समय आ गया हैं, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टाध्वनि हुई हैं, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का, तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।

एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी,

एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी, चोर ने छुरा दिखाकर कहा -"अगर तू शोर मचाएगी तो मैं तुझे मार डालूंगा|"

 महिला बड़ी भली थी वह बोली -"मैं शोर क्यों मचाऊंगी! तुमको मुझसे ज्यादा चीजों की जरूरत है| आओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगी|"

 उसके बाद उसने अलमारी का ताला खोल दिया और एक-एक कीमती चीज उसके सामने रखने लगी| चोर हक्का-बक्का होकर उसकी ओर देखने लगा| स्त्री ने कहा -"तुम्हें जो-जो चाहिए खुशी से ले जाओ, ये चीजें तुम्हारे काम आएंगी| मेरे पास तो बेकार पड़ी हैं|"

 थोड़ी देर में वह महिला देखती क्या है कि चोर की आंखों से आंसू टपक रहे हैं और वह बिना कुछ लिए चला गया| अगले दिन उस महिला को एक चिट्ठी मिली| उस चिट्ठी में लिखा था --

 'मुझे घृणा से डर नहीं लगता| कोई गालियां देता है तो उसका भी मुझ पर कोई असर नहीं होता| उन्हें सहते-सहते मेरा दिल पत्थर-सा हो गया है, पर मेरी प्यारी बहन, प्यार से मेरा दिल मोम हो जाता है| तुमने मुझ पर प्यार बरसाया| मैं उसे कभी नहीं भूल सकूंगा|'

महान समाज सेवक और प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे।

बहुत पुरानी बात है। बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर एक रेलगाड़ी आकर रुकी। गाड़ी में से एक आधुनिक नौजवान लड़का उतरा। लड़के के पास एक छोटा सा संदूक था।
 स्टेशन पर उतरते ही लड़के ने कुली को आवाज लगानी शुरू कर दी। वह एक छोटा स्टेशन था, जहाँ पर ज्यादा लोग नहीं उतरते थे, इसलिए वहाँ उस स्टेशन पर कुली नहीं थे। स्टेशन पर कुली न देख कर लड़का परेशान हो गया। इतने में एक अधेड़ उम्र का आदमी धोती-कुर्ता पहने हुए लड़के के पास से गुजरा। लड़के ने उसे ही कुली समझा और उसे सामान उठाने के लिए कहा। धोती-कुर्ता पहने हुए आदमी ने भी चुपचाप सन्दूक उठाया और आधुनिक नौजवान के पीछे चल पड़ा।

 घर पहुँचकर नौजवान ने कुली को पैसे देने चाहे। पर कुली ने पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया और नौजवान से कहा—‘‘धन्यवाद ! पैसों की मुझे जरूरत नहीं है, फिर भी अगर तुम देना चाहते हो, तो एक वचन दो कि आगे से तुम अपना सारा काम अपने हाथों ही करोगे। अपना काम अपने आप करने पर ही हम स्वावलम्बी बनेंगे और जिस देश का नौजवान स्वावलम्बी नहीं हो, वह देश कभी सुखी और समृद्धिशाली नहीं हो सकता।’’ धोती-कुर्ता पहने यह व्यक्ति स्वयं उस समय के महान समाज सेवक और प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे।

देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए।

 उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?'

 स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए…….. तो उनकी भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा

जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए…….. तो उनकी भगवा वस्त्र
 और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा: “आपका बाकी सामान
 कहाँ है ??”
 स्वामी जी बोले…. “बस यही सामान है“….
 तो कुछ लोगों ने व्यंग किया कि……. “अरे! यह
 कैसी संस्कृति है आपकी?
 तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है…….कोट –
 पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ??”
 स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए ओर बोले::
 “हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है….
 आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं……
 जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है।
 ॥ संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है ॥

हम धनवान होंगे या नहीं, यशस्वी होंगे या नहीं,

हम धनवान होंगे या नहीं, यशस्वी होंगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है परन्तु भैया ! हम मरेंगे या नहीं इसमें कोई शंका है? विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है, गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है परन्तु इस जीवन की गाड़ी के छूटने का कोई निश्चित समय है?
 आज तक आपने जगत का जो कुछ जाना है, जो कुछ प्राप्त किया है.... आज के बाद जो जानोगे और प्राप्त करोगे, प्यारे भैया ! वह सब मृत्यु के एक ही झटके में छूट जायेगा, जाना अनजाना हो जायेगा, प्राप्ति अप्राप्ति में बदल जायेगी |
 अतः सावधान हो जाओ | अन्तर्मुख होकर अपने अविचल आत्मा को, निजस्वरूप के अगाध आनन्द को, शाश्वत शांति को प्राप्त कर लो | फिर तो आप ही अविनाशी आत्मा हो |

 जागो.... उठो..... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ | सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो | आत्मा में अथाह सामर्थ्य है | अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हे ऊपर उठा सके | अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं जो तुम्हे दबा सके |

 सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी बिखरती रहती है | अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं | तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ और व्यवहार काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ | दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो | सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो | विचारवन्त और प्रसन्न रहो | जीवमात्र को अपना स्वरूप समझो | सबसे स्नेह रखो | दिल को व्यापक रखो | आत्मनिष्ठा में जगे हुए महापुरुषों के सत्संग तथा सत्साहित्य से जीवन की भक्ति और वेदान्त से पुष्ट तथा पुलकित करो |

एक महात्मा थे। उनका एक जवान शिष्य था।

एक महात्मा थे। उनका एक जवान शिष्य था। उस शिष्य को अपने ज्ञान और विद्वत्ता पर बड़ा घमंड था। महात्मा उसके इस घमंड को दूर करना चाहते थे। इसलिए एक दिन सवेरे ही वह उसे साथ लेकर यात्रा पर निकले।

 धूप चढ़ते दोनों एक खेत में पहुंचे। वहां एक किसान क्यारियां सींच रहा था। गुरु-शिष्य काफी देर तक वहां खड़े रहे, किन्तु किसान ने आंख उठाकर उनकी ओर देख तक नहीं। वह लगन से अपने काम में लगा रहा।

 दोपहर ढले वे एक नगर में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि एक लुहार लोहा पीट रहा है। पसीने से उसकी सारी देह तर-बतर हो रही थी। गुरु-शिष्य काफी देर वहां खड़े रहे, लेकिन लुहार को गर्दन ऊपर उठानी की भी फुरसत नहीं थी।

 गुरु-शिष्य फिर आगे बढ़े और दिन-छिपे के समय वे एक सराय में पहुंचे। वे थकान से चूर हो गये। वहां तीन मुसाफिर और बैठे थे। वे भी पूरी तरह थके हुए दिखाई पड़ते थे।गुरु ने शिष्य से कहा,"तुमने देखा, पाने के लिए कितना देना होता है। किसान तन-मन लुटाता है, तब कहीं खेत फलता है। लुहार शरीर सुख देता है तब धातु सिद्ध होती है। यात्री अपने को चुकाकर मंजिल पाता है। तुमने ज्ञान के पोथे-पर-पोथे रट डाले, लेकिन कितना ज्ञान पा लिया ? ज्ञान तो कमाई है। कमाकर उसे पाया जाता है। कर्मों से ज्ञान की क्यारियां सींचो। जीवन की आंच में ज्ञान की धातु सिद्ध करो। मार्ग में अपने को चुकाकर ज्ञान की मंजिल पाओ। ज्ञान किसी का सगा नहीं है।

 जो उसे कमाता है, उसी के पास वह जाता है।" —

भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा

280 लाख करोड़ का सवाल है ...
 भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश
 कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है
 स्विस बैंक के
 डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के
 डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग
 280
 लाख करोड़ रुपये
 (280 ,00 ,000 ,000 ,000) उनके स्विस
 बैंक में जमा है. ये रकम
 इतनी है कि भारत का आने वाले 30
 सालों का बजट बिना टैक्स के
 बनाया जा सकता है.
 या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के
 अवसर दिए जा सकते है. या यूँ
 भी कह सकते है
 कि भारत के किसी भी गाँव से
 दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है.
 ऐसा भी कह
 सकते है कि 500 से
 ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण
 किये जा सकते है. ये रकम
 इतनी ज्यादा है कि अगर हर
 भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए
 जाये
 तो 60
 साल तक ख़त्म ना हो.
 यानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक
 से लोन लेने कि कोई जरुरत
 नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे भ्रष्ट
 राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को
 लूटा है और ये लूट
 का सिलसिला अभी तक 2013 तक
 जारी है. इस सिलसिले को अब
 रोकना
 बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे
 भारत पर करीब
 200 सालो तक राज
 करके करीब 1 लाख
 करोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के
 केवल 65 सालों में हमारे
 भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है. एक
 तरफ
 200
 साल में 1 लाख करोड़ है और
 दूसरी तरफ केवल 65
 सालों में 280 लाख करोड़ है.
 यानि हर साल लगभग 4.37 लाख
 करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़
 भारतीय
 मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट
 लोगों द्वारा जमा
 करवाई गई है. भारत
 को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन
 की कोई दरकार नहीं है. सोचो की
 कितना पैसा हमारे भ्रष्ट
 राजनेताओं और उच्च
 अधिकारीयों ने ब्लाक करके
 रखा हुआ
 है. हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट
 अधिकारीयों के खिलाफ जाने
 का पूर्ण अधिकार
 है.हाल ही में हुवे घोटालों का आप
 सभी को पता ही है - CWG
 घोटाला, २ जी
 स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ...
 और
 ना जाने कौन कौन से घोटाले
 अभी उजागर होने वाले है ........आप
 लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो.
 इसे भी इतना
 फॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे पढ़े ... और एक
 आन्दोलन बन जाये

पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर

पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता .
 पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता.
 तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है. उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.”
 और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया.

 बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे .
 लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”

 पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”
 ” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था, आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बना था , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गया और पिताजी सोचते रह गए .

 Friends , कई बार life की problems भी ऐसी ही होती हैं, सामने से देखने पर वो बड़ी भारी-भरकम लगती हैं , मानो उनसे पार पान असंभव ही हो , लेकिन जब हम उनका दूसरा पहलु देखते हैं तो वही problems आसान बन जाती हैं, इसलिए जब कभी आपके सामने कोई समस्या आये तो उसे सिर्फ एक नजरिये से देखने की बजाये अलग-अलग दृष्टिकोण से देखिये , क्या पता वो बिलकुल आसान बन जाएं!