बिन हाथों के यह कीट कितना सुंदर निर्माण कर देते हैं।


हुनर होशियारी के मामले में मधुमक्खी को बुद्धिमान कीट माना जाता है लेकिन कीटों के ही कुल में आने वाले कुम्हार ततैया जिसे मड डाउबर भी कहते हैं किसी भी मामले में मधुमक्खी की तो बात ही क्या मनुष्य को भी अपने रचना कौशल से आश्चर्यचकित करता है। पीले व काले रंग से युक्त कुम्हार ततैया अपने मुंह में मिट्टी भरकर उसमें पानी मिलाकर सप्ताहों की मेहनत से मिट्टी के बेहतरीन घोसला का निर्माण करता है इसके द्वारा निर्मित एक घोसले में 15 से 20 कक्ष होते है। आश्चर्य तो यह है उसे घोसले में यह खुद नहीं रहता केवल अपने बच्चों के लिए उसे बनाता है। जैसे ही प्रथम कक्ष का निर्माण पूरा होता है यह आसपास खास प्रजाति की मकड़ी को पकड़ता है उसे मकड़ी के गले में स्थित आहारनाल पर डंक मारता है डंक में मंद विष होता है डंक के कारण वह मकड़ी मूर्छित अवस्था या पैरालाइज्ड हो जाती है उसे पैरालाइज्ड मकड़ी को लाकर यह प्रथम कक्ष में छोड़ देता है और उस मूर्छित मकड़ी के पेट के ऊपर अपना अंडा यह कीट रख देता है या रख देती है और उस कक्ष के प्रवेश द्वार को मिट्टी से लीप देती है ।मकड़ी को यह मारता नहीं है केवल पैरालाइज करता है इसलिए यदि मकड़ी को यह मार देगा तो कक्ष में वह सड़ने लगेगी इससे इसका अंडा खराब हो जाएगा और अंडे से जो लार्वा निकलेगा फिर वह उसे मकड़ी को खा नही पाएगा जब तक वह निकलेगा मकड़ी का शव नष्ट हो जाएगा तो ऐसे में जैसे ही अंडे से दो-तीन दिन बाद लार्वा निकलता है वह मकड़ी को खाने लगता है और तीन सप्ताह तक वह व्यस्क कीट बनने की स्थिति में आ जाता है। कुम्हार ततैया अपने घोंसले के 15 से 20 कक्ष में इसी प्रक्रिया को अपनाता है और सबसे बाहरी कक्ष को विशेष मजबूती से मिट्टी के द्वारा लीपकर बंद कर देता है। बीच-बीच में यह उसे अपने घोसले की देखभाल भी करता रहता है इसकी बाहरी सतह पर कहीं दरारें पड़ जाती हैं जैसे पहले दूरदराज आज के ग्रामीण अंचल में आज भी मानव बस्तियों में मिट्टी के मकानों को लीपा जाता था उनकी मरम्मत की जाती थी तो यह भी बड़ी होशियारी से उसकी मरम्मत करता रहता है क्योंकि कक्ष के अंदर तापमान अधिक बना रहना चाहिए इससे लार्वा खराब नहीं होते लार्वा से कीट जल्दी अच्छा विकसित होता है तो यह पूरा ख्याल रखता है। मकड़ियों को शिकार बना कर यह प्रकृति में उनका नियंत्रण करता है। मनुष्य के लिए यह नुकसानदायक नहीं है सिवाय इसके द्वारा हुई एक विमान दुर्घटना के कारण जो वर्ष 1996 में हुई थी तुर्किश विमान कंपनी बरगेनियर के नागरिक विमान 306 के एयर स्पीड मापी यंत्र पीटोट ट्यूब के अंदर घोंसला बनाकर उसे आंशिक तौर पर ब्लॉक कर दिया था जिससे पायलट को हवा में विमान की गति की गलत रीडिंग मिली और अटलांटिक महासागर में विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया 189 यात्री उसमें मारे गए इस कीट का कोई दोष नहीं था विमान के क्रु मेंबर व टेक्निकल टीम की लापरवाही थी विमान 20 दिन से अधिक रनवे पर खड़ा हुआ था उड़ान से पूर्व उसके उपकरणों की जांच नहीं की गई।

इस नन्हे से कीट में देखने पर जो महज 1 इंच लंबा है कुछ मिलीग्राम वजनी है इतना हुनर कौशल कैसे होता है कैसे यह सटीकता से मकड़ी के गले में डंक मारता है ठीक उसकी आहार नाल में जिससे मकड़ी मूर्छित हो जाती है और कैसे यह घोंसले के लिए मिट्टी का चुनाव करता है कैसे यह तापमान का पता लगता है एक ही कीट आर्किटेक्ट से लेकर सिविल सर्जन और यहां तक की मौसम विज्ञानी की भूमिका में हमें नजर आ रहा है सचमुच भगवान का बनाया हुआ यह जगत कितना अनूठा है बिन हाथों के यह कीट कितना सुंदर निर्माण कर देते हैं। भारतीय संस्कृति बहुत महान है हमने बचपन से देखा सुना जाना है यह कीट घर में घोंसला बनाता है चारपाई के पाये में भी आसानी से घोंसला बना देता है इसकी घोसले को तोड़ना पाप माना गया है। आंखों के पलक में होने वाले इन्फेक्शन आईलिड इन्फेक्शन जो बैक्टीरिया के कारण होता है जिसे देहाती बोली हमारे इधर अंजनआरी कहते हैं लोक में प्रचलित एक भ्रांत धारणा है की जो इस कुम्हार ततैया के घर को तोड़ता है उसकी आंख में यह संक्रमण लगता है। वैज्ञानिक सच्चाई इसके विपरीत है लेकिन फिर भी यह मिथक कही ना कहीं इस कीट इसके घोसले को सुरक्षा ही प्रदान करता है। यह लार्वा से कीट बनने के दौरान ही मांसाहारी होता है उसके पश्चात अपना पूरा जीवन शाकाहारी फूलों के रस को पीकर व्यतीत करता है।
"कुम्हार ततैया,कर बिन करता कृति महान"
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बुजुर्गों का अनुभव, युवाओं का जोश और बच्चों के आईडिये की तिकड़ी चमत्कार कर सकती है क्योंकि

दोस्तों, बुजुर्गों का अनुभव, युवाओं का जोश और बच्चों के आईडिये की तिकड़ी चमत्कार कर सकती है क्योंकि बुजुर्गों - के पास अनुभव और समय दोनों हैं,  हाँ जोश और नये आइडिये थोड़े कम हैं, युवाओं - के पास जोश है पर अनुभव थोड़ा कम है. और आजकल के बच्चों - के पास नये नये आईडिया बहुत हैं पर कब, कहाँ और कैसे लगाना है ये पता नहीं।
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(1) एक नजरिया 
एक फैक्ट्री में एक इंजन ख़राब हो गया, बहुत सारे युवा उसे ठीक करने की कोशिश कर रहे थे पर 10 दिन तक कुछ नहीं हुआ. फैक्ट्री को हर दिन लाखों रुपये का नुकसान हो रहा था. तभी वहां एक बुजुर्ग आ गए जो किसी समय में वहां नौकरी करते थे. जैसे ही ये बात उन बुजुर्ग को पता चली तो उन्होंने इंजन को देखा और बस एक ही हथौड़ा मारा होगा उन बुजुर्ग व्यक्ति ने कि इंजन चालू हो गया.
जी हाँ ये कमाल था उनके अनुभव का. अगर हम अपनी समस्याओं का समाधान अपने बुजुर्गों से पूछें तो पाएंगे कि उनके पास एक ही समस्या के कई कई समाधान होते हैं, बस हमें पूछने की देर है.

(2) दूसरा नजरिया 
कुछ इंजीनियर/ कर्मचारी एक टेढ़े मेढ़े पाइप में तार डालने की कोशिश कर रहे थे. कई घंटों की मेहनत के बाद भी जब वो तार को उस पाइप में नहीं डाल पाए तो एक बच्चा कहीं से चूहा पकड़ कर लाया और तार को उस चूहे की पूँछ में बाँध कर तार को पाइप के दूसरी तरफ से निकाल दिया.
जी हाँ, मान कर चलिए आजकल के बच्चों के पास आईडिये बहुत हैं और नई technology सिखने में भी उन्हें समय नहीं लगता.

(3) तीसरा नजरिया 
घर में किसी भी function में, अपने अनुभव से बुजुर्ग सारे प्रोग्राम बनाते हैं, युवा भाग दौड़ कर के उन कामों को पूरा करते हैं और बच्चे नए नए आईडिया दे कर उन प्रोग्रामों में चार चाँद लगा देते हैं. 
ये हैं हमारे अपने घरों में तीनों की एक साथ उपयोगिता.
इसी तरह मित्रों, अगर हमें भी हमारे भारत को एक भारत और श्रेष्ठ भारत बनाना है तो हम तीनों (बुजुर्ग, युवा, बच्चे) को एक साथ मिल कर कोई भी काम करना होगा.

सोच कर देखिये जिन देशों ने भी इस तकनीक को अपनाया है वे आज की तारीख में विकसित देशों की श्रेणी में हैं. ये प्रयोग सिर्फ देश को ही नहीं करना है, अगर हम भी अपने अपने घरों के हर छोटे बड़े कामों में भी ये प्रयोग करना शुरू कर दें *तो समझिये हम भी जल्दी ही विकसित की श्रेणी में आ जायेंगे और कोई बड़ा चमत्कार कर दे, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा* 
 
जिंदगी में जब कभी भी टूटने लगे हौसले,
तो बस ये बात याद रखना,
बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
ढूँढ़ ही लेते है अंधेरों में मंजिल अपनी,
जुगनू कभी किसी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…..!

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 

बहुत सी तीरंदाजी प्रतियोगिताएँ जीतने के बाद एक नौजवान तीरंदाज ...

बहुत सी तीरंदाजी प्रतियोगिताएँ जीतने के बाद एक नौजवान तीरंदाज खुद को सबसे बड़ा धनुर्धर मानने लगा । वह जहाँ भी जाता लोगों को उससे मुकाबला करने की चुनौती देता, और उन्हें हरा कर उनका मज़ाक उड़ाता । एक बार उसने एक प्रसिद्द धनुर्धर मास्टर को चुनौती देने का फैसला किया और सुबह -सुबह पहाढ़ों के बीच स्थित उनके मठ जा पहुंचा ।
“मास्टर मैं आपको तीरंदाजी मुकाबले के लिए चुनौती देता हूँ । “, नवयुवक बोला ।
मास्टर ने नवयुवक की चुनौती स्वीकार कर ली ।
मुक़ाबला शुरू हुआ ।
नवयुवक ने अपने पहले प्रयास में ही दूर रखे लक्ष्य के ठीक बीचो -बीच निशाना लगा दिया ।
और अगले निशाने में उसने लक्ष्य पर लगे पहले तीर को ही भेद डाला ।
अपनी योग्यता पर घमंड करते हुए नवयुवक बोला, ” कहिये मास्टर, क्या आप इससे बेहतर करके दिखा सकते हैं ? यदि ‘हाँ ‘ तो कर के दिखाइए, यदि ‘नहीं ‘ तो हार मान लीजिये ।
मास्टर बोले, ” पुत्र, मेरे पीछे आओ !”
मास्टर चलते-चलते एक खतरनाक खाई के पास पहुँच गए ।
नवयुवक यह सब देख कुछ घबड़ाया और बोला, “मास्टर, ये आप मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं ? “
मास्टर बोले, ” घबराओ मत पुत्र, हम लगभग पहुँच ही गए हैं, बस अब हमें इस ज़र्ज़र पुल के बीचो -बीच जाना है । “
नवयुवक ने देखा की दो पहाड़ियों को जोड़ने के लिए किसी ने लकड़ी के एक कामचलाऊ पुल का निर्माण किया था, और मास्टर उसी पर जाने के लिए कह रहे थे।
मास्टर पुल के बीचो – बीच पहुंचे, कमान से तीर निकाला और दूर एक पेड़ के तने पर सटीक निशाना लगाया ।निशाना लगाने के बाद मास्टर बोले, ” आओ पुत्र, अब तुम भी उसी पेड़ पर निशाना लगा कर अपनी दक्षता सिद्ध करो । “
नवयुवक डरते -डरते आगे बढ़ा और बेहद कठिनाई के साथ पुल के बीचों – बीच पहुंचा और किसी तरह कमान से तीर निकाल कर निशाना लगाया पर निशाना लक्ष्य के आस -पास भी नहीं लगा ।
नवयुवक निराश हो गया और अपनी हार स्वीकार कर ली ।
तब मास्टर बोले, ” पुत्र, तुमने तीर -धनुष पर तो नियंत्रण हांसिल कर लिया है पर तुम्हारा उस मन पर अभी भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को भेदने के लिए आवश्यक है। पुत्र, इस बात को हमेशा ध्यान में रखो कि *जब तक मनुष्य के अंदर सीखने की जिज्ञासा है तब तक उसके ज्ञान में वृद्धि होती है लेकिन जब उसके अंदर सर्वश्रेष्ठ होने का अहंकार आ जाता है तभी से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है* ।“
नवयुवक मास्टर की बात समझ चुका था, उसे एहसास हो गया कि *उसका धनुर्विद्या का ज्ञान बस अनुकूल परिस्थितियों में कारगर है और उसे अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।* उसने तत्काल ही अपने अहंकार के लिए मास्टर से क्षमा मांगी और सदा एक शिष्य की तरह सीखने और अपने ज्ञान पर घमंड ना करने की सौगंध ली ।
दोस्तों, बहुत बार हम अपनी कई जिज्ञासाओं का समाधान करने में सिर्फ इसलिए संकोच करते हैं कि लोग क्या सोचेंगे वे हमें अज्ञानी न समझ लें और हमारे दिल की बात जुबाँ तक आते-आते रुक जाती है जबकि सर्वज्ञाता बनना किसी के भी लिए असंभव है। किसी ने क्या खूब कहा है- यदि आप अपनी जिज्ञासा समाधान हेतु प्रश्न करते हैं तो महज चंद पल के लिए अज्ञानी साबित होते हैं, परंतु यदि नहीं करते तो हमेशा के लिए अज्ञानी बन जाते हैं। इसलिए जब भी कोई स्वस्थ, रचनात्मक व स्तरयुक्त जिज्ञासा आपके मन में उठे, उसी क्षण उसका समाधान करने का प्रयास करें।
अहंकार को एकदम छोड दीजिये । ज्ञान का क्षेत्र बेहद व्यापक है। इस अविरल छलकती ज्ञान गंगा में से अपने लिए जितने सार्थक मोती समेट सकें, समेटने की कोशिश कीजिए।
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अपनी नन्ही सी बेटी की भूख शांत करने एक दिन एक ...

अपनी नन्ही सी बेटी की भूख शांत  करने एक दिन एक बेहद ग़रीब आदमी ने एक दुकान से पाव रोटी चुराई और झट से उसे लेकर एक तरफ मूड गया ताकि उसे कोई देख न ले ।

लेकिन दुकान में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था इसलिए दुकान मालिक ने उसे देख लिया औऱ जाते जाते उसे पकड़ लिया गया। 

लेकिन उस गरीब आदमी के साथ उसकी बेटी भी थी।दुकान के ठीक बाहर खड़ी उसकी बेटी को जब कुछ शक हुआ तो उसने अपने पिताजी से पूछा...क्या हुआ पापा ??

नन्ही बेटी को अपनी तरफ़ आते देख बाप बेहद परेशान हो जाता है और जल्दी ही दुकान मालिक से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगने के लिए अपने होंठ हिलाता है।

जब तक दुकान मालिक पूरे माजरा को समझता है , तब तक उसकी नन्ही बेटी उसके पास आ जाती है ।

उसके बाद दुकान मालिक उसकी नन्ही बेटी के सिर पर बड़े प्रेम से अपना हाथ फेरते हुए कहता है... " बेटी, तेरा बाप जल्दीबाजी में अपना बचा हुआ पैसा लेना भूल गया था ,.....बस औऱ कुछ नहीं " ।

इसके साथ ही दुकान मालिक कुछ पैसे गिनता है और उसे पकड़ा देता है…।

दुकान से बाहर निकलते समय बाप अफसोस और बेबसी से शर्मसार दिखाई देता हैं ।

तभी दुकान से *दूसरा आदमी* जोर से आवाज़ देकर कहता है " भाई , अपना ये चावल का थैला भी भूल गए हो , इसे भी लेते जाओ । "

गरीब आदमी मुड़कर वापस आता है औऱ बड़े कृतज्ञता के भाव से दुकान मालिक की तरह देखते हुए चावल का थैला भी लेकर चला जाता है .

याद रखें दोस्तों......इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। 
आपको जो संतुष्टि का एहसास होगा उसे शब्दों में बयाँ करना मुमकिन नही हैं।आप भी जरुरतमद की भलाई के लिए ऐसे काम जरूर करें व किसी का सहारा बने। जिससे आप भी बहुत खुश रहेंगे और सब की दुआएं भी आपको मिलती रहेंगी।
गुरुवर कहते अगर हम जरूरतमंद लोगों का पर्दा रखते हुए उनकी मदद करते हैं तो ऊपरवाला भी इसी तरह हमारी मदद करता है ।
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इस संसार में जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है- खाना! हमारे देश में बहुत से लोग है, जो भूखे पेट सोने को मजबूर हो जाते हैं। दुख का विषय है कि स्वतंत्रता के 76 वर्ष बीतने के बाद भी हमारे भारत देश में 19 करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे पेट सो जाते हैं ।
हर व्यक्ति समाज का हिस्सा है और समाज में हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है। गरीब और असहाय व्यक्ति भी समाज का ही हिस्सा है, लेकिन समाज के सिस्टम के कारण वह सुख सुविधाओं से दूर हो जाता है।