कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते

सम्राट चंद्रगुप्त ने एक दिन अपने
 प्रतिभाशाली मंत्री चाणक्य से कहा-
 “कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते।“
 चाणक्य ने उत्तर दिया,
 "महाराज रूप तो मृगतृष्णा है। आदमी की पहचान तो गुण
 और बुद्धि से ही होती है, रूप से नहीं।“
 “क्या कोई ऐसा उदाहरण है जहाँ गुण के सामने रूप
 फींका दिखे। चंद्रगुप्त ने पूछा।
 "ऐसे तो कई उदाहरण हैं महाराज, चाणक्य ने कहा,
 "पहले आप पानी पीकर मन को हल्का करें बाद में बात
 करेंगे।"
 फिर उन्होंने दो पानी के गिलास बारी बारी से
 राजा की ओर बढ़ा दिये।
 "महाराज पहले गिलास का पानी इस सोने के घड़े
 का था और दूसरे गिलास
 का पानी काली मिट्टी की उस मटकी का था। अब
 आप बताएँ, किस गिलास का पानी आपको मीठा और
 स्वादिष्ट लगा।"
 सम्राट ने जवाब दिया- "मटकी से भरे गिलास
 का पानी शीतल और स्वदिष्ट लगा एवं उससे
 तृप्ति भी मिली।"
 वहाँ उपस्थित महारानी ने मुस्कुराकर कहा,
 "महाराज हमारे प्रधानमंत्री ने बुद्धिचातुर्य से
 प्रश्न का उत्तर दे दिया। भला यह सोने का खूबसूरत
 घड़ा किस काम का जिसका पानी बेस्वाद लगता है।
 दूसरी ओर काली मिट्टी से बनी यह मटकी, जो कुरूप
 तो लगती है लेकिन उसमें गुण छिपे हैं। उसका शीतल
 सुस्वादु पानी पीकर मन तृप्त हो जाता है। अब आप
 ही बतला दें कि रूप बड़ा है अथवा गुण एवं बुद्धि?"

दो सहेलियाँ वर्षों बाद मिलीं. .

दो सहेलियाँ वर्षों बाद मिलीं. .
 औपचारिक कुशलक्षेम के बादएक ने
 दूसरी से पूछा..'कितने बच्चे हैं तुम्हारे ?
 'दो बेटियाँ हैं 'दूसरी ने हर्ष के साथ
 कहा .पहली सहेली ने चेहरे पर सिकन
 लाते हुए कहा -:'हे भगवान, इस जमाने में
 दो बेटियाँ. मेरेतो दो बेटे हैं.मुझे
 भी दो बार पता चला था गर्भ में
 बेटी है,मैंने तो छुटकारा पा लिया. . ..अब
 देखो कितनी निश्चिन्त हूँ. 'पहली ने
 कहा. 'काश, तीस वर्ष पहलेतेरी माँ ने
 भी तेरे जन्म से पहले ऐसा किया होतातब
 आज तू दो हत्याओं की दोषी न
 होती.तेरी माँ को एक ही ह्त्या का पाप
 लगता'.पास में खड़ी सहेली की इस बात
 पर घिग्गी बन्धगई ..!!उसके पास सर
 नीचे झुकाने के आलावा कोईचारा ना था ..!

एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे

शहर की मेन मार्केट में एक गराज था जिसे राकेश नाम का मैकेनिक चलाता था . वैसे तो राकेश एक अच्छा आदमी था लेकिन उसके अन्दर एक कमी थी , वो अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को छोटा समझता था .
 एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे. बातों -बातों में जब राकेश को पता चला की कस्टमर एक हार्ट सर्जन है तो उसने तुरन्त पूछा , “ डॉक्टर साहब मैं ये सोच रहा था की हम दोनों के काम एक जैसे हैं… !”
 “एक जैसे ! वो कैसे ?” , सर्जन ने थोडा अचरजसे पूछा .
 “देखिये राकेश कार के कौम्प्लिकेटेड इंजन पर काम करते हुए बोल, “ ये इंजन कार का दिल है , मैं चेक करता हूँ की ये कैसा चल रहा है , मैं इसे खोलता हूँ , इसके वाल्वस फिट करता हूँ , अच्छी तरह से सर्विसिंग कर के इसकी प्रोब्लम्स ख़तम करता हूँ और फिर वापस जोड़ देता हूँ …आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं ; क्यों ?”
 “हम्म ”, सर्जन ने हामी भरी .
 “तो ये बताइए की आपको मुझसे 10 गुना अधिक पैसे क्यों मिलते हैं, काम तो आप भी मेरे जैसा ही करते हैं ?”, राकेश ने खीजते हुए पूछा .
 सर्जन ने एक क्षण सोचा और मुस्कुराते हुए बोला , “ जो तुम कर रहे हो उसे चालू इंजन पे कर के देखो , समझ जाओगे

तो दुनिया का कोई इंसान भूखा नही रहता

बेटी ने आम खाकर गुठली और छिल्लका आँगन में
 फेंक दिया।
 मैंने देखा एक चींटी आम की तरफ
 चली आ रही है, आज चींटी भर पेट भोजन
 करेगी फिर सोचा कहीं ये इतना न खा ले
 कि पचा भी ना पाए।
 मगर ये क्या चींटी तो सिर्फ
 सूंघ कर चली गयी।
 बहुत आश्चर्य हुआ, कोई
 चींटी मीठा आम छोड़ कर कैसे जा सकती है?
 अरे!!!! ये क्या, अभी मैं ये सब विचारों के उधेड़-
 बुन में ही था कि मैंने देखा,
 बहुत सारी चींटियाँ पंक्तिबद्ध छिल्लके और
 गुठली की तरफ बढ़ रहीं थीं।
 अब मेरी समझ में आ गया था कि वो चींटी सिर्फ
 सूंघ कर क्यों चली गयी थी।
 काश, ऐसी सोच मनुष्य के मन में भी होती,
 तो दुनिया का कोई
 इंसान भूखा नही रहता

उस समय का इंतज़ार न करें कि भगवान हमें कंकड़ मारे फिर हम उससे संवाद करें

एक दिन एक सुपरवाइजर ने एक निर्माणाधीन इमरात की छठवीं मंज़िल से नीचे काम कर रहे मज़दूर को आवाज़ दी किन्तु चल रहे निर्माण के शोर में मज़दूर ने सुपरवाइजर की आवाज़ नहीं सुनी.

 तब सुपरवाइजर ने मज़दूर का ध्यान आकर्षित कराने के लिए एक 10 रुपये का नोट फेंका जो मज़दूर के सामने गिरा. मज़दूर ने वह् नोट उठा कर जेब में रख लिया और अपना काम में लग गया.

 इसके बाद सुपरवाइजर ने मज़दूर का फिर ध्यान आकर्षित कराने के लिए 50 रुपये का नोट फेंका. मज़दूर ने नोट उठाया, जेब में र्कहा और फिर अपने काम में लग गया.

 अबकी बार सुपरवाइजर ने मज़दूर का ध्यान आकर्षित कराने के लिए एक कंकड़ उठाया और फेंका जो कि ठीक मज़दूर के सिर पर लगा. इस बार मज़दूर ने सिर उठा कर देखा और सुपरवाइजर ने मज़दूर को अपनी बात समझाई.

 यह कहानी हमारी जिन्दगी जैसी है. भगवान ऊपर से हमें कुछ संदेश देना चाहता है पर हम हमारी दुनियादारी में व्यस्त रहते हैं.फिर भगवान हमें छोटे छोटे उपहार देता है और हम उन उपहारों को रख लेते हैं यह देखे बिना कि वे कहाँ से आ रहे हैं. हम भगवान को धन्यवाद नहीं देते हैं और कहते हैं कि हम भाग्यवान हैं.

 फिर भगवान हमें एक कंकड़ मारता है जिसे हम समस्या कहते हैं और फिर हम भगवान की ओर देखते हैं और संवाद कराने का प्रयास करते हैं.

 अतः जिन्दगी में हमें जब भी कुछ मिलें तो तुरंत भगवान को धन्यवाद देना न भूलें और उस समय का इंतज़ार न करें कि भगवान हमें कंकड़ मारे फिर हम उससे संवाद करें.
 एक चांडाल संतो के सत्संग के कारण ईश्वर की
 भक्ति में लिन रहने लगा ! एक दिन वह मन्दिर की
 ओर जां रहा था कि अचानक किसी ने उसे जकड़
 लिया ! उसने जकडने वाले से पूछा, तुम कौन हो
 और तुमने मुझे क्यों जकाडा है ? जकडने वाले ने
 जवाब दिया, मैं ब्रह्मराक्षस हूँ! तुम्हे खाकर अपनी
 भूख मिटाना चाहता हूँ ! चांडाल को पूजा के लिए
 जाना था, अत: उसने कहा, मेरा प्रतिदिन का नियम
 है कि मैं भगवान की संगीतमई प्रार्थना करता हूँ ! पहले
 मैं अपने आराध्य की उपासना करके लौट आऊ, फिर
 तुम मुझे खा लेना! ब्रह्मराक्षस ने उसे छोड् दिया! चांडाल
 ने भगवान के विग्रह के समक्ष नाच-गाकर कीर्तन किया!
 फिर उसने अपने एक मित्र से कहा, आज हमारी आखिरी
 भेंट है! मैं राक्षस की भूख मिटाने जा रहा हूँ! मित्र ने उसे
 समझाया कि तुम्हे ऐसा पागलपान नही करना चाहिये!
 चांडाल ने जवाब दिया, सत्य सबसे बड़ा धर्म है! मैंने
 ब्रह्मराक्षस को वापस लौटने का वचन दिया है, उसे अवश्य
 पूरा करूँगा! फिर राक्षस के पास लौटकर कहा, अब मुझे
 खा लो! राक्षस उसकी ईश्वर एव सत्य के प्रति निष्ठा देखकर
 दंग रह गया! उसने कहा, अगर तुम मुझे अपने पुण्य में से
 एक दिन का भी पुण्य दे दो, तो मेरे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे!
 चांडाल ने ऐसा ही किया और देखते ही देखते राक्षस की
 मुक्ति हो गयी!

अंग्रेजी भाषा और हिन्दी भाषा में सबसे बड़ा अंतर यही है की

अंग्रेजी भाषा और हिन्दी भाषा में सबसे बड़ा अंतर यही है की अंग्रेजी बोलने, लिखने पढने वालो का  मश्तिष्क उतना विकसित नहीं हो पाता है जितने की हिंदी में होता है,
 अंग्रेजो सीधी और बिना मात्राओं की भाषा है, पूर्ण रूप से आसान,
 हिंदी में टेढ़े मेरे घुमावदार अक्षर और मत्राए भी है, जिसके कारण व्यक्ति का मष्तिष्क पूर्ण रूप से गतिशील रहता है,
 संस्कृत भाषा में ये गति तीव्रतम होती है,
 इसलिए अमेरिका अब संस्कृत का दीवाना है,
 और चीन वालो ने भी हिंदी सिख ली है,

एक बार अब्दुल कलाम का interview लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा

एक बार अब्दुल कलाम का interview लिया जा रहा था. उनसे एक सवाल पूछा गया. और उस सवाल के जवाब को ही मैं यहाँ बता रहा हूँ -

 सवाल: क्या आप हमें अपने व्यक्तिगत जीवन से कोई उदहरण दे सकते हैं कि हमें हार को किस तरह स्वीकार करना चाहिए? एक अच्छा LEADER हार को किस तरह फेस करता हैं ?

 अब्दुल कलाम: मैं आपको अपने जीवन का ही एक अनुभव सुनाता हूँ. 1973 में मुझे भारत के satellite launch program, जिसे SLV-3 भी कहा जाता हैं, का head बनाया गया ।

 हमारा Goal था की 1980 तक किसी भी तरह से हमारी Satellite ‘रोहिणी’ को अंतरिक्ष में भेज दिया जाए. जिसके लिए मुझे बहुत बड़ा बजट दिया गया और Human resource भी Available कराया गया, पर मुझे इस बात से भी अवगत कराया गया था की निश्चित समय तक हमें ये Goal पूरा करना ही हैं ।
 हजारों लोगों ने बहुत मेहनत की ।

 1979 तक- शायद अगस्त का महिना था- हमें लगा की अब हम पूरी तरह से तैयार हैं।

 Launch के दिन प्रोजेक्ट Director होने के नाते. मैं कंट्रोल रूम में Launch बटन दबाने के लिए गया ।

 Launch से 4 मिनट पहले Computer उन चीजों की List को जांचने लगा जो जरुरी थी. ताकि कोई कमी न रह जाए. और फिर कुछ देर बाद Computer ने Launch रोक दिया l वो बता रहा था की कुछ चीज़े आवश्यकता अनुसार सही स्तिथि पर नहीं हैं l

 मेरे साथ ही कुछ Experts भी थे. उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया की सब कुछ ठीक है, कोई गलती नहीं हुई हैं और फिर मैंने Computer के निर्देश को Bypass कर दिया । और राकेट Launch कर दिया.

 FIRST स्टेज तक सब कुछ ठीक रहा, पर सेकंड स्टेज तक गड़बड़ हो गयी. राकेट अंतरिक्ष में जाने के बजाय बंगाल की खाड़ी में जा गिरा । ये एक बहुत ही बड़ी असफ़लता थी ।

 उसी दिन, Indian Space Research Organisation (I.S.R.O.) के चेयरमैन प्रोफेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई ।

 प्रोफेसर धवन, जो की संस्था के प्रमुख थे. उन्होंने Mission की असफ़लता की सारी ज़िम्मेदारी खुद ले लीं. और कहा कि हमें कुछ और Technological उपायों की जरुरत थी । पूरी देश दुनिया की Media वहां मौजूद थी़ । उन्होंने कहा की अगले साल तक ये कार्य संपन्न हो ही जायेगा ।

 अगले साल जुलाई 1980 में हमने दोबारा कोशिश की । इस बार हम सफल हुए । पूरा देश गर्व महसूस कर रहा था ।

 इस बार भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गयी-

 प्रोफेसर धवन ने मुझे Side में बुलाया और कहा – ” इस बार तुम प्रेस कांफ्रेंस Conduct करो.”

 उस दिन मैंने एक बहुत ही जरुरी बात सीखी -

 जब असफ़लता आती हैं तो एक LEADER उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हैं
 और
 जब सफ़लता मिलती है तो वो उसे अपने साथियों के साथ बाँट देता हैं ।

कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं

एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं।
 जो शिष्य जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आए।
 अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए।किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास छह।
 गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते,गुरु का आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए।जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु केपास पहुंचे।
 गुरु ने कहा, 'यह सब मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था।
 जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगनेलगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पररहता होगा। यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके
 कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो। इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।'
 यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।

छोटे से गाँव में एक माँ - बाप और एक लड़की का गरीब परिवार रहता था

छोटे से गाँव में एक माँ - बाप और एक लड़की का गरीब परिवार रहता था .
 वह बड़ी मुश्किल से एक समय के खाने का गुज़ारा कर पाते थे .
 सुबह के खाने के लिए शाम को सोचना पड़ता था और शाम का खाना सुबह के लिए .
 एक दिन की बात है ,
 लड़की की माँ खूब परेशान होकर अपने पति को बोली की
 एक तो हमारा एक समय का खाना पूरा नहीं होता और बेटी साँप की तरह बड़ी होती जा रही है .
 गरीबी की हालत में इसकी शादी केसे करेंगे ?
 बाप भी विचार में पड़ गया .
 दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक फेसला किया की कल बेटी को मार कर गाड़ देंगे .
 दुसरे दिन का सूरज निकला ,
 माँ ने लड़की को खूब लाड प्यार किया , अचे से नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने लगी .
 यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे कही दूर भेज रहे हो क्या ?
 वर्ना आज तक आपने मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
 माँ केवल चुप रही और रोने लगी ,
 तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर आया ,
 माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप के साथ रवाना कर दिया .
 रस्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया ,
 बाप एक दम से निचे बेथ गया ,
 बेटी से देखा नहीं गया उसने तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध दिया .
 बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे
 बाप ने फावड़ा लेकर एक गढ़ा खोदने लगा बेटी सामने बेठे - बेठे देख रही थी ,
 थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप को पसीना आने लगा .
 बेटी बाप के पास गयी और पसीना पोछने के लिए अपनी चुनरी दी .
 बाप ने धक्का देकर बोला तू दूर जाकर बेठ।

 थोड़ी देर बाद जब बाप गडा खोदते - खोदते थक गया ,
 बेटी दूर से बैठे -बैठे देख रही थी,
 जब उसको लगा की पिताजी शायद थक गये तो पास आकर बोली
 पिताजी आप थक गये है .
 लाओ फावड़ा में खोद देती हु आप थोडा आराम कर लो .
 मुझसे आप की तकलीफ नहीं देखि जाती .
 यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले लगा लिया,
 उसकी आँखों में आंसू की नदिया बहने लगी ,
 उसका दिल पसीज गया ,
 बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह गढ़ा में तेरे लिए ही खोद रहा था .
 और तू मेरी चिंता करती है , अब जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे कलेजा का टुकड़ा बन कर रहेगी
 में खूब मेहनत करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा -
 सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट है ,
 बेटा - बेटी दोनों समान है ,
 उनका एक समान पालन करना हमारा फ़र्ज़ है

एक छोटा बच्चा था । बहुत ही नेक और

एक छोटा बच्चा था ।
 बहुत ही नेक और होशियार था । पढ़ने में भी काफी तेज था ..
 एक दिन वो मंदिर में गया ।
 मंदिर के अन्दर सभी भक्तो भगवान के दर्शन कर रहे थे और मंत्र बोल रहे थे । कुछ भक्त स्तुतिगान भी कर रहे थे । कुछ भक्त संस्कृत के काफी मुश्केल श्लोक भी बोल रहे थे।

 लड़के ने कुछ देर यह सब देखा और उसके चहेरे पर युही मायूशी छा गयी । क्युकी उसे यह सब प्राथना और मंत्र बोलना आता नहीं था ।
 कुछ देर वहा खड़ा रहा और कुछ उपाय खोजने लगा ।

 कुछ पल में ही लड़के के चहेरे पर मुस्कराहट छा गयी । उसने अपनी आँखे बंध की , अपने दोनों हाथ जोड़े और दश बार A-B-C-D बोलने लगा।
 मंदिर के पुजारी ने यह देखा उसने लड़के से पूछा की "बेटे तुम यह क्या कर रहे हो , लड़के ने पूरी बात बताई ।"
 पुजारी ने कहा की ” बेटे भगवान से इस तरह से प्राथना नहीं की जा सकती, तुम तो A-B-C-D बोल रहे हो ।”
 लड़के ने उत्तर दिया की ” मुझे प्रार्थना , मंत्र , भजन नहीं आते . मुझे सिर्फ A-B-C-D ही आती है . प्रार्थना , मंत्र ,भजन यह सब A-B-C-D से ही बनते है ।
 मैं दस बार A-B-C-D बोल गया हूँ । यह सब शब्द में से भगवान अपने लिए खुद प्राथना , मंत्र , भजन बना लेंगे ।
 लड़के की बात सुनकर पुजारी जी चुप हो गए । उनको अपनी भूल का एहसास हो गया । उन्होंने बच्चें को बहुत सारा प्रसाद दिया और एक प्रार्थना सिखा दी ।

मझदार में नाविक ने कहा, “नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो

नाव चली जा रही थी। बीच
 मझदार में नाविक ने कहा,
 “नाव में बोझ ज्यादा है, कोई
 एक आदमी कम हो जाए
 तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।” अब कम हो जए तो कौन कम
 हो जाए? कई लोग
 तो तैरना नहीं जानते थे:
 जो जानते थे उनके लिए नदी के
 बर्फीले पानी में तैर के
 जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग
 थे-,अफसर,वकील,,
 उद्योगपति,नेता जी और उनके
 सहयोगी के अलावा आम
 आदमी भी। सभी चाहते थे
 कि आम आदमी पानी में कूद जाए। उन्होंने आम आदमी से कूद जाने
 को कहा, तो उसने मना कर
 दिया। बोला, जब जब मैं आप लोगो से मदत
 को हाँथ फैलता हूँ कोई मेरी मदत
 नहीं करता जब तक मैं
 उसकी पूरी कीमत न चुका दूँ , मैं
 आप की बात भला क्यूँ मानूँ? “
 जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग
 नेता के पास गए, जो इन सबसे
 अलग एक तरफ बैठा हुआ था।
 इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने
 के बाद कहा,
 “आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर
 नदी में फेंक देंगे।” नेता ने कहा,
 “नहीं-नहीं ऐसा करना भूल
 होगी। आम आदमी के साथ
 अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे -
 नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ
 किया जिसमें राष्ट्र,देश, इतिहास,परम्परा की गाथा गा
 हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के
 आह्वान में हाथ ऊँचा करके कहा,
 ये नाव नहीं हमारा सम्मान डूब
 रहा है
 “हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे…
 नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे”…. सुनकर आम आदमी इतना जोश में
 आया कि वह नदी के बर्फीले
 पानी में कूद पड़ा। “दोस्तों पिछले 65 सालो से
 आम आदमी के साथ
 यही तो होता आया है "

जिनका नाम है प्रोफेसर धर्मपाल जी जिनका जीवन यूरोप में 40 वर्ष पढ़ाने में बीता

एक बहुत मशहूर प्रोफ़ेसर रहे हैं यूरोप में जिनका नाम है प्रोफेसर धर्मपाल जी जिनका जीवन यूरोप में 40 वर्ष पढ़ाने में बीता| भाई राजीव जी के वे परिचित थे| एक दिन भाई राजीव जी ने उनसे पूछा कि हमारे देश के युवा बाहर जाने को इतने लालायित क्यों रहते हैं और ऐसा क्या है विदेशों में जो हमारे यहाँ नहीं है? प्रोफेसर जी ने उत्तर दिया कि जब कोई जाति किसी दूसरी जाति को ठीक तरह से नहीं जानती होती तो वह या तो उससे आतंकित रहती है या प्रभावित रहती है| भारत के सन्दर्भ में, यहाँ की जाति पश्चिम से बुरी तरह प्रभावित है इसीलिए हर कोई चाहता है कि वह बाहर जा कर बस जाए लेकिन मूल में सच्चाई कुछ और ही होती है! इस पर भाई राजीव जी ने बाद में कई दस्तावेजों को लेकर अध्ययन किया और कुछ बातें उनकी समझ में आयीं| उन्होंने यूरोप के दार्शनिकों का अध्ययन किया और पता लगाया कि उनके दर्शन का यूरोप की सभ्यता पर क्या प्रभाव पड़ा| जब इन तथ्यों का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि ये तथ्य किसी भी भारतीय को बुरी तरह चौंका देने की क्षमता रखते हैं!

एक भिखारी भूख – प्यास से त्रस्त होकर आत्महत्या की योजना बना रहा था , तभी वहां

एक भिखारी भूख – प्यास से त्रस्त होकर आत्महत्या की योजना बना रहा था , तभी वहां सेएक नेत्रहीन महात्मा गुजरे | भिखारी ने उन्हें अपने मन की व्यथा सुनाई और कहा , ” मैं अपनी गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करना चाहता हूँ |” उसकी बात सुन महात्मा हँसे और बोले , “ठीक है, आत्महत्या करो लेकिन पहले अपनी एक आंख मुझे दे दो | मैं तुम्हे एक हज़ार अशरफिया दूंगा | ” भिखारी चोंका | उसने कहा , “आप कैसी बात करते हैं | मैं आंख कैसे देसकता हूँ |”
 महात्मा बोले, “आंख न सही , एक हाथ ही दे दो , मैं तुम्हे एक हज़ार अशरफिया दूंगा | ” भिखारी असमंजस में पड़ गया | महात्मा मुस्कराते हुए बोले, संसार में सबसे बड़ा धन निरोगी काया है | तुम्हारे हाथ-पाव ठीक है, शारीर स्वस्थ है, तुमसे बड़ा धनी और कौन हो सकता है | तुमसे गरीब तो में हूँ कि मेरी आँखें नहीं हैं मगर में तो कभी आत्महत्या के बारे में नहीं सोचता | भिखारी ने उनसे छमा मांगी और संकल्प किया कि वह कोई काम करके जीवन-यापन करेगा |

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमे लिखा था कि कल उनका एक साथी गुजर गया, जो उनकी तरक्की को रोक रहा था। कर्मचारियों को उसको श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया था।

 श्रद्धांजलि सभा कंपनी के मीटिंग हॉल में रखी गई थी। पहले तो लोगो को यह जानकर दुःख हुआ कि उनका एक साथी नही रहा, फिर वो उत्सुकता से सोचने लगे कि यह कौन हो सकता है? धीरे धीरे कर्मचारी हॉल में जमा होने लगे। सभी होंठो पर एक ही सवाल था! आख़िर वह कौन है, जो हमारी तरक्की की राह में बाधा बन रहा था।

 हॉल में दरी बिछी थी और दीवार से कुछ पहले एक परदा लगा हुआ था। वहां एक और सूचना लगी थी कि गुजरने वाले व्यक्ति की तस्वीर परदे के पीछे दीवार पर लगी है। सभी एक एक करके परदे के पीछे जाए, उसे श्रद्धांजलि दे और फिर तरक्की की राह में अपने कदम बदाये, क्योकि उनकी राह रोकने वाला अब चला गया। कर्मचारिओं के चेहरे पर हैरानी के भाव थे!कर्मचारी एक एक करके परदे के पीछे जाते और जब वे दीवार पर टंगी तस्वीर देखते, तो अवाक हो जाते। दरअसल, दीवार पर तस्वीर की जगह एक आइना टंगा था। उसके नीचे एक पर्ची लगी थी, जिसमे लिखा था "दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है, जो आपकी तरक्की को रोक सकता है, आपको सीमओं में बाँध सकता है! और वह आप ख़ुद है. "अपने नकारात्मक हिस्से को श्रद्धांजलि दे चुके 'नए' साथियो का स्वागत है.

एक हिरनी को नदी किनारे पानी पीते देख बहेलिये ने तीर चलाने की सोची। परन्तु

एक हिरनी को नदी किनारे पानी पीते देख बहेलिये ने तीर चलाने की सोची। परन्तु हिरनी बोल पड़ी, "ठहरो, तुम मुझे मारकर खा लेना पर पहले मुझे अपने बच्चों को प्यार कर उन्हें अपने पति के पास पहुँचा आने दो।"
 कुछ सोचकर बहेलिये ने हिरनी की बात मान ली। हिरनी ख़ुश होकर अपने बच्चों के पास आई, उन्हें प्यार किया और फिर पति को सारा क़िस्सा सुनाया। हिरन ने कहा, "तुम बच्चों को लेकर घर जावो और मैं बहेलिये के पास जाता हूँ।" हिरनी ने कहा, "यह कैसे हो सकता है? वचन में मैं बँधी हूँ, तुम नहीं।" यह सुन बच्चे बोले, "हम अकेले कहाँ रहेंगे।" अतः चारों बहेलिये के पास पहुँचे। उन सब को देख बहेलिये ने सोचा कि उसके हाथ लाटरी लग गई है।

 उधर हिरनी की बातें सियार ने सुन लीं थी। वह दौड़कर शेर के पास गया और सारा क़िस्सा बताकर बोला, "हज़ूर, आपका अन्न भंडार लूटा जा रहा है। चलिये, जल्दी कुछ करिये।"

 अतः जैसे ही बहेलिया हिरणों पर तीर चलाने को हुआ तो पीछे से झपटकर शेर ने उसे दबोच लिया। हिरनी अपने परिवार सहित जंगल में भाग खड़ी हुई।

 यह कथा वचन निभाने के महत्व को रेखांकित तो करती ही है पर यह भी बताती है कि सुजनों की रक्षा के लिये ईश्वर कभी-कभी दुर्जनों का भी उपयोग करते हैं। इसलिये सक्षम होकर भी ईश्वर दुर्जनों का संपूर्ण नाश नहीं करते।

एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी

एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।

 कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'

 सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'

 शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'

 उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।

 दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'