समय बदल रहा है लोग बदल रहे है अब देश भी बदलेगा .

आज सब्जी खरीदने बाजार गया था .... वहां पर एक सज्जन ने एक सब्जी वाले के तराजू पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए .., उसे चोर घोषित कर दिया सब्जी वाले ने प्रतिउत्तर में तराजू का सही माप दिखाकर अपनी विश्वसनीयता साबित की और अंत में कहा :-

 "साहब अगर इस तरह पाई पाई का हिसाब कभी हमारे देश के नेताओं से मांग लिया होता .... तो आज आपको मुझ पर शक करने की जरुरत ही ना होती"

 वो सज्जन शांत और आवाक!!! एक सब्जी वाले के मुंह से ऐसी जागरूकता भरी बाते सुनकर शायद उन्हें अपने पाई पाई का हिसाब याद आ गया ...!!

 समय बदल रहा है लोग बदल रहे है अब देश भी बदलेगा ...!

अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें... दूसरों की अपेक्षाओं से

एक आदमी ने देखा कि एक गरीब बच्चा उसकी कीमती कार को बड़े गौर से निहार रहा है। आदमी ने उस लड़के को कार में बिठा लिया।

 लड़के ने कहा:- आपकी कार बहुत अच्छी है, बहुत कीमती होगी ना?
 आदमी:- हाँ, मेरे भाई ने मुझे गिफ्ट दी है।

 लड़का (कुछ सोचते हुए):- वाह ! आपके भाई कितने अच्छे हैं।
 आदमी:- मुझे पता है तुम क्या सोच रहे हो.. तुम भी ऐंसी कार चाहते हो ना?

 लड़का:- नहीं! मैं आपके भाई की तरह बनना चाहता हूँ।

 "अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें... दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा ऊँची"

51 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले अब्राहम लिंकन जब 22 वर्ष के थे

51 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले अब्राहम लिंकन जब 22 वर्ष के थे तब उन्हें ब्यापार में भारी असफलता का मुह देखना पड़ा था और जब उनकी उम्र 23 वर्ष की थी राजनीती में कदम रखते हुए बिधायक हेतु चुनाव लड़ा और हार गए,
और जब उनकी उम्र 24 वर्ष की थी तब एक बार पुन: ब्यापार में असफल हो गए और जब उनकी उम्र 26 वर्ष की थी तब उनकी पत्नी का देहांत हो गया अर्थात गृहस्थ जीवन की एक बड़ीहार थी लिंकन के लिए, और जब अब्राहम लिंकन की उम्र 27 वर्ष की थी तब उनका नर्वस ब्रेक डाउन हो गया
एक बार फिर लिंकन को स्वाथ्य धोखा दे गया था तब भी लिंकन ने स्वयं को टूटने नहीं दिया और जब उनकी उम्र 29 वर्ष की थी तब एक बार फिर उन्हें असफलता का स्वाद चखना पड़ा इस बार लिंकन स्पीकर का चुनाव हार गए थे और जब उनकी उम्र 31 वर्ष की थी तब एक और हार उनकी झोली मे आई इस बार लिंकन इलेक्टर का चुनाव हारे थे, लेकिन लिंकन ने स्वयं कभी हार नहीं मानी और एक बार लिंकन फिर चुनाव मैदान में थे और एक बार फिर हार का सामना उन्हें करना पड़ा इस बार
लिंकन अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव हार गए ,
इतना ही नहीं एक बार फिर लिंकन अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव हार गए
इस बार उनकी उम्र थी 39 वर्ष ,
और जब लिंकन की उम्र 46 वर्ष कि थी
तब एक बार फिर असफलता ने उन्हें तोडने का असफल प्रयास किया
और लिंकन सीनेट का चुनाव हार गए
लेकिन लिंकन नहीं टूटे,
क्योंकि एक और हार लिंकन के खाते में आनी बांकी थी तब उनकी उम्र थी 47 वर्ष और उपराष्ट्रपति के चुनाव में एक और हार ।
कर्मठ एवं द्रढ़ इच्छाशक्ति के धनी अब्राहम लिंकनने इतनी हारों के बावजूद भी कभी हार नहीं मानी तभी तो 51 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए ।
 "जो हिम्मत नहीं हारता वह सैकड़ों बार हारकर भी नहीं हारता ।"

अकबर की आँखे शर्म से झुक गई

सम्राट अकबर गया था शिकार को 'शाम
 हो गई ;नमाज का वक्त हो गया वो नमाज पढने
 लगा ,तभी एक स्त्री वहा से भागती हुई सम्राट
 को धक्का देती आगे निकली अकबर गिर
 गया लेकिन नमाज में बोले कैसे क्रोध तो बहुत
 आया ! एक तो कोई नमाज पढ़ रहा है उसके साथ
 ऐसा व्यवहार ! जल्दी जल्दी उसने नमाज
 पूरी की और उस स्त्री का पीछा ही करने
 की सोचता है ;लेकिन वो स्त्री खुद ही वापस
 लौट रही थी ; अकबर ने कहा पागल होश में है? मै
 नमाज पढ़ रहा था तूने मुझे धक्का दिया!
 इतना तो ख़याल होना चाहिए फ़क़ीर हो या गरीब
 कोई भी नमाज पढ़े तो सम्मान होना चाहिए ! प्रभु
 की प्रार्थना में जो लींन है उसके साथ
 एसा दुरव्यवहार ? मै सम्राट हूँ क्या ये
 भी दिखाई न पड़ा ' उस स्त्री ने झुक कर प्रणाम
 किया और कहा - मुझे माफ़ करे भूल हो गई
 क्यूँकि मेरा प्रेमी आज आने वाला था ,मै राह पर
 गांव के बाहर उसके स्वागत को गई थी !मुझे याद
 नही आपको कब धक्का लगा ,मुझे याद
 भी नही आप कब बीच में आये ! लेकिन सम्राट
 एक बात मुझे भी पुछनी है,मै साधारण प्रेमी से
 मिलने जा रही थी और ऐसी मगन थी मुझे आप
 दिखाई न पड़े और आप परमात्मा सेमिलने बैठे थे
 आपको मेरा धक्का मालूम हुआ ?
 मै आपको दिखाई
 पड़ी ? अकबर की आँखे शर्म से झुक गई

मां अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला, तो

एक मां अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला, तो वह रोने लगी और जोर-जोर से बच्चे का नामलेकर पुकारने लगी। कुछ समय बाद बच्चा दौड़ता हुआ उसके पास आ पहुंचा। मां ने पहले तो उसे गले से लगाया, जी भर कर लाड़ किया, फिर उसे डांटने लगी। उससे पूछा कि इतनी देर तक वह कहां छुपा हुआ था।बच्चे ने बताया, 'मां! मैं छुपा हुआ नहीं था, मैं तो बाहर की दुकान से गोंद लेनेगया था। मां ने पूछा कि गोंद से क्या करना है, तो बच्चा भोलेपन से बोला, मैं उससे चाय की प्याली जोडूंगा। वह टूट गई है।
मां ने आगे पूछा, टूटी प्याली जोड़ कर क्या करोगे?वह तो बहुत खराब दिखेगी। तबबच्चे ने भोलेपन से कहा, जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उसी कप में तुम्हें चाय पिलाया करूंगा। यह सुन कर मां पसीने-पसीने हो गई। कुछ पल तक तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे?
फिर होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया औरप्यार से कहा, बेटा! ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। देखो, तुम्हारे पापा कितनी मेहनत करते हैं ताकि तुम अच्छे स्कूल में जा सको। मम्मी तुम्हारे लिए तरह-तरह के भोजन बनाती है। सब लोग तुम्हारा ख्याल रखते हैं किताकि जब वे बूढ़े हो जाएं तो तुम उनका सहारा बनो........।
बच्चे ने मां की बात बीच में ही काटते हुए कहा, 'लेकिन मां! क्या दादा-दादी ने भी यही नहीं सोचा होगा, जब वे पापा को पढ़ाते होंगे? आज जब दादी से गलती से चाय का कप टूट गया तो तुमकितने जोर से चिल्लाई थीं। इतना गुस्सा किया था आपने कि दादा जी को आपसे दादी के लिए माफी मांगनी पड़ी। पता है मां, आप तो कमरे में जा कर सो गईं, लेकिन दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वहकप संभाल कर रख लिया है, और अब मैं उसे जोड़ दूंगा।

केवल पेट भरने के लिए जीवों की हिंसा मत कर

एक बार बुद्ध और उनके शिष्य घूमते-घामते कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक साँप को बहुत-सी चींटियाँ चिपककर काट रही थीं और साँप छटपटा रहा था।

 शिष्यों ने पूछाः "भंते ! इतनी सारी चींटियाँ इस एक साँप को चिपकर काट रही हैं और इतना बड़ा साँप इन चीटियों से परेशान होकर छटपटा रहा है, ऐसा क्यों? क्या यह अपने किन्हीं कर्मों का फल भोग रहा है?"

 बुद्धः "हाँ, कुछ साल पहले जब हम इस तालाब के पास से गुजर रहे थे, तब एक मछुआ मछलियाँ पकड़ रहा था। हमने उसे कहा भी था कि पापकर्म मत कर। केवल पेट भरने के लिए जीवों की हिंसा मत कर लेकिन उसने हमारी बात नहीं मानी। वही अभागा मछुआ साँप की योनि में जन्मा है और उसके द्वारा मारी हुई मछलियाँ ही चींटिया ही बनी हैं और वे अपना बदला ले रही हैं। मछुआ निर्दोष जीवों की हिंसा का फल भुगत रहा है।"

एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया

एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्‍धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्‍धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्‍याग आये थे। सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्‍त नही हुआ है किन्‍तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्‍या क्‍या छोड़ कर आये है ? सेठ जी ने बड़े उत्‍साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्‍याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्‍न दोबारा किया और सेठ जी का उत्‍तर वही था अन्‍तोगत्‍वा एक बार प्रश्‍न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है। बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्‍याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्‍यादा कर्त्तव्‍य बोध पर ध्‍यान देना चाहिए।-----

जिस देश का राजा जैसा होता है, उस देश की प्रजा भी वैसी ही हो जाती है

एक राजा था बहुत ही इमानदार ,किन्तु उसके राज्य में हर तरफ अशांति थी।
 राजा बहुत परेशान।
 उसने घोषणा करवाई कि जो मेरे राज्य को सही कर देगा उसे पांच लाख का इनाम दूंगा।
 सभी मंत्रियों ने कहा कि यह राशी बहुत कम है।
 राजा ने फिर घोषणा करवादी कि वह अपना आधा राज्य दे देगा। लेकिन कोई भी उसके राज्य को ठीक करने के लिए आगे नही आया।
 कुछ दिनों बाद एक सन्यासी आया और बोला- महाराज मै आपका राज्य ठीक कर दूंगा और मुझे पैसा भी नही चाहिए और आपका राज्य भी नही चाहिए। पर आपको मेरी एक शर्त माननी होगी कि किसी भी शिकायत पर मै जो फैसला करूंगा आपको वो मानना होगा।
 राजा ने शर्त मान ली।
 अब सन्यासी ने राजा से कहलवाकर राज्य भर से शिकायत मंगवाई।
 राजा के पास टोकरे के टोकरे भर भर कर शिकायत आने लगी। जब शिकायत आनी बंद हो गयी तो सन्यासी ने राजा को किसी एक पर्ची को उठाने को कहा।
 जब राजा ने एक पर्ची उठा कर उसकी शिकायत पढ़ी तो वह सन्न रह गया।
 उसमे लिखा था - मै एक गरीब किसान हूँ और राजा का लड़का मेरी लडकी को छेड़ता है, अब मै किसके पास शिकायत लेकर जाऊ।
 यह सुनकर उस सन्यासी ने कहा- राजा तू अपने लडके को कल jail me dal doo .
 राजा के यह सुनकर आशू आ गये क्योकि वह उसका इकलोता लड़का था और ऐसा करने से मना किया।
 सन्यासी ने राजा को कहा कि तुमने मुझे कहा था कि तुम मेरी शर्त मानोगे।
 फिर राजा ने वैसा ही किया और दूसरे दिन अपने बेटे को jail me daal diya
 इसके बाद राजा ने सन्यासी से कहा कि क्या दूसरी पर्ची उठाऊ?
 सन्यासी ने कहा- राजन अब किसी पर्ची को उठाने की जरूरत नही । इन सब में अब तुम आग लगा दो।
 जिस देश का राजा एक शिकायत मिलने पर अपने बेटे को jail me daal sakta hai उस देश में कोई भी अब अपराध करने का साहस नही कर सकता।
 और सच में उस राजा का राज्य बिलकुल सही हो गया।
 किसी ने सच ही कहा है जिस देश का राजा जैसा होता है, उस देश की प्रजा भी वैसी ही हो जाती है।

एक बार किसी गुरु से उसके शिष्य ने पूछा मैं जानना चाहता हुं कि

एक बार किसी गुरु से उसके शिष्य ने पूछा मैं जानना चाहता हुं कि स्वर्ग व नरक कैसे हैं? उसे गुरु ने कहा आंखे बंद करों और देखों। शिष्य ने आंखे बंद की और शांत शुन्यता में चला गया। गुरु ने कहा अब स्वर्ग देखों और थोड़ी देर बाद कहा अब नर्क देखों। उसके थोड़ी देर बाद गुरु ने पूछा- क्या देखा? वह बोला स्वर्ग में मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा जिसकी लोग चर्चा करते हैं न ही अमृत की नदियां, न स्वर्ण भवन और न ही अप्सराएं। वहां तो कुछ भी नहीं था और नर्क में भी कुछ भी नहीं था न अग्रि की ज्वालाएं, न पीडि़तों का रूदन कुछ भी नहीं।शिष्य ने पूछा- इसका क्या कारण है? मैंने स्वर्ग देखा या नहीं देखा? गुरु हंसे और बोले- निश्चय ही तुमने स्वर्ग और नर्क देखे हैं लेकिन अमृत की नदियां, अप्सराएं, स्वर्ण भवन, पीड़ा व रूदन तुझे स्वयं वहां ले जाने होंगे। वे वहां नहीं मिलते जो हम अपने साथ ले जाते हैं वही वहां उपलब्ध हो जाता हैं। हम ही स्वर्ग हैं, हम ही नर्क । व्यक्ति जो अपने अंदर रखता है, वही अपने बाहर पाता है। भीतर स्वर्ग है तो बाहर स्वर्ग है और भीतर नर्क हो तो बाहर नर्क है। स्वयं में ही सब कुछ छुपा है।

महर्षि वेदव्यास किसी नगर से गुजर रहे थे

महर्षि वेदव्यास किसी नगर से गुजर रहे थे। उन्होंने एक कीड़े को तेजी से भागते हुए देखा। मन में सवाल उठा- एक छोटा सा कीड़ा इतनी तेजी से क्यों भागा जा रहा है?
 उन्होंने कीड़े से पूछा- ऐ क्षुद्र जंतु! तुम इतनी तेजी से कहां जा रहे हो?
 कीड़ा बोला- हे महर्षि, आप तो इतनेज्ञानी हैं, यहां क्षुद्र कौन और महान कौन? क्या इनकी सही-सही परिभाषा संभव है?
 महर्षि सकपकाए। फिर सवाल किया- अच्छा बताओ कि तुम इतनी तेजी से कहां भागे जा रहे हो?
 इस पर कीड़े ने कहा-अरे! मैं तो अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा हूं। देख नहीं रहे कि पीछे कितनी तेजी से बैलगाड़ी चली आ रही है।
 कीडे़ के उत्तर ने महर्षि को फिर चौंकाया।
 वह बोले- पर तुम तो इस कीट योनि में पड़े हो। यदि मर गए तो तुम्हें दूसरा और अच्छा शरीर मिलेगा।
 इस पर कीड़ा बोला- महर्षि! मैं तो कीड़े की योनि में रहकर कीड़े का आचरण कर रहा हूं, पर ऐसे प्राणी बहुत हैं जिन्हें विधाता ने शरीर तो मनुष्य का दिया है, पर वे मुझ कीड़े से भी गया-गुजरा आचरण कर रहे हैं।
 महर्षि उस नन्हे से जीव के कथन पर सोचते रहे, फिर उन्होंने उससे कहा- चलो, हम तुम्हारी सहायता कर देते हैं।
 कीड़े ने पूछा- किस तरह की सहायता?
 महर्षि बोले-तुम्हें उठाकर मैं आने वाली बैलगाड़ी से दूर पहुंचा देता हूं।
 इस पर कीड़े ने कहा- धन्यवाद! श्रमरहित पराश्रित जीवन विकास केसारे द्वार बंद कर देता है। मुझे स्वयं ही संघर्ष करने दीजिए।
 महर्षि को कोई जवाब न सूझा!!

मैं आप लोगों को एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ।



शिकागो वक्तृता: हमारे मतभेद का कारण - 15 सित. 1893

मैं आप लोगों को एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ। अभी जिन वाग्मी वक्तामहोदय ने व्याख्यान समाप्त किया हैं, उनके इस वचन को आप ने सुना हैं कि ' आओ, हम लोग एक दूसरे को बुरा कहना बंद कर दें', और उन्हे इस बात का बड़ा खेद हैं कि लोगों में सदा इतना मतभेद क्यों रहता हैं ।

परन्तु मैं समझता हूँ कि जो कहानी मैं सुनाने वाला हूँ, उससे आप लोगों को इस मतभेद का कारण स्पष्ट हो जाएगा । एक कुएँ में बहुत समय से एक मेढ़क रहता था । वह वहीं पैदा हुआ था और वहीं उसका पालन-पोषण हुआ, पर फिर भी वह मेढ़क छोटा ही था । धीरे- धीरे यह मेढ़क उसी कुएँ में रहते रहते मोटा और चिकना हो गया । अब एक दिन एक दूसरा मेढ़क, जो समुद्र में रहता था, वहाँ आया और कुएँ में गिर पड़ा ।

"
तुम कहाँ से आये हो?"

"
मैं समुद्र से आया हूँ।" "समुद्र! भला कितना बड़ा हैं वह? क्या वह भी इतना ही बड़ा हैं, जितना मेरा यह कुआँ?" और यह कहते हुए उसने कुएँ में एक किनारे से दूसरे किनारे तक छलाँग मारी। समुद्र वाले मेढ़क ने कहा, "मेरे मित्र! भला, सुमद्र की तुलना इस छोटे से कुएँ से किस प्रकार कर सकते हो?" तब उस कुएँ वाले मेढ़क ने दूसरी छलाँग मारी और पूछा, "तो क्या तुम्हारा समुद्र इतना बड़ा हैं?" समुद्र वाले मेढ़क ने कहा, "तुम कैसी बेवकूफी की बात कर रहे हो! क्या समुद्र की तुलना तुम्हारे कुएँ से हो सकती हैं?" अब तो कुएँवाले मेढ़क ने कहा, "जा, जा! मेरे कुएँ से बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता। संसार में इससे बड़ा और कुछ नहीं हैं! झूठा कहीं का? अरे, इसे बाहर निकाल दो।"
यही कठिनाई सदैव रही हैं।

मैं हिन्दू हूँ। मैं अपने क्षुद्र कुएँ में बैठा यही समझता हूँ कि मेरा कुआँ ही संपूर्ण संसार हैं। ईसाई भी अपने क्षुद्र कुएँ में बैठे हुए यही समझता हूँ कि सारा संसार उसी के कुएँ में हैं। और मुसलमान भी अपने क्षुद्र कुएँ में बैठा हुए उसी को सारा ब्रह्माण्डमानता हैं। मैं आप अमेरिकावालों को धन्य कहता हूँ, क्योकि आप हम लोगों के इनछोटे छोटे संसारों की क्षुद्र सीमाओं को तोड़ने का महान् प्रयत्न कर रहे हैं, और मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में परमात्मा आपके इस उद्योग में सहायता देकर आपका मनोरथ पूर्ण करेंगे ।

अमेरिकावासी बहनो तथा भाईयो,



अमेरिकावासी बहनो तथा भाईयो,

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सब से प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान् जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं। भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

- ' जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।'
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।
- ' जो कोई मेरी ओर आता हैं - चाहे किसी प्रकार से हो - मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।'
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता । पर अब उनका समय आ गया हैं, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टाध्वनि हुई हैं, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का, तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।