टी.बी. के काल्पनिक मरीज न बने, न ही अपने बच्चों को बनाएं -

हमारे देश के डॉक्टर आज किसी भी मामले में किसी से भी पीछे नहीं है और उन्होंने लोगों की दुःख-बीमारी में उनके शोषण के नए-नए तरीके ईजाद कर लिए हैं. ड्रग ट्रायल, काल्पनिक बीमारियों का भय दिखाकर मरीजों और उनके परिवार का शोषण करना, जो बीमारी नहीं है, उसकी दवाई देना, जो तकलीफ नहीं है, उसका आपरेशन करना आदि, आदि.
इसी तरह जो डॉक्टर जांच करवा कर मरीजों को टी.बी. की बीमारी बता रहे हैं, वह वास्तव में कितनी सही है, यह भी किसी भी सर्वे के अनुसार निश्चित ही नहीं है और अगर फिर इस जांच के आधार पर इन मरीजों को सालो तक के इतने लम्बे समय तक बिना बीमारी के ये दवा दे दी जायेंगी, तो फिर उनका तो भगवान ही मालिक होगा.
साथ ही छोटे-छोटे बच्चों को जब 15 माह तक प्रायमरी काम्प्लेक्स के नाम पर दवाइयां दी जाती हैं, तो उन मासूमों का क्या हाल होता होगा? जीवन में आगे जाकर उनको क्या-क्या परेशानी आती होगी?
मेरे ही एक परिचित के बच्चे को आज से 25 वर्ष पूर्व टी.बी. की ये दवाइयाँ प्रायमरी काम्प्लेक्स बताकर दी गयी थी, तब से वह बच्चा आज शादीशुदा व बच्चों वाला युवक है, लेकिन फिर भी वह अपनी जिम्मेदारी सम्हाल नहीं पा रहा है और अपने पिता पर ही आश्रित है. इससे यह पता चल रहा है कि हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को किस दलदल में धकेल रहे हैं?
हमारे फेसबुक के दिल्ली के एक मित्र श्री मिश्र सा. बताते हैं कि जब डॉक्टरों द्वारा gastric pain को heart attack बताया जाता है, तो हम क्या कर सकते हैं?
अनपढ़ तो छोड़िए, समझदार व्यक्ति और उसके परिवार वाले भी एक डॉक्टर की बात मानने के अलावा उस समय क्या कर सकते हैं?
वे आगे बताते हैं कि डॉक्टर साहब मेरी स्वयं की दो बार heart surgery हो गई है व aeortic valve व एक जीवन रक्षक प्रणाली ICD implanted है। अब cardiologist की हर एक बात मानने को मैं मजबूर हूँ।
यह बात भी सही है कि टी.बी. की दवा डेढ़ साल तक लेने के बाद भी कई मरीजों को आराम नहीं होता है, फिर दूसरी कई जांच कराई जाती है और फिर से दूसरी दवाइयां दे दी जाती हैं. तब फिर अन्य कई रोग होने पर कई दवाइयां आपको आजीवन लेनी पड़ती हैं.
कुछ सालों बाद किसी भी छोटी सी परेशानी होने पर डॉक्टर फिर से कहता है कि ये जांच और करवाओ. इस तरह आपके लाखो रूपए लुटते हैं और फिर आपकी पूरी जिंदगी परेशानी और उलझन में ही ख़त्म हो जाती है.
सभी डॉक्टरों के लिए प्रत्येक मरीज आज सिर्फ एक ग्राहक ही हैं और कोई दुकानदार अपने ग्राहक को क्यों छोड़ेगा? आज मरीजों की हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि जैसा डॉक्टर नचा रहे हैं, वैसे ही वे और उनके परिवार वाले नाच रहे हैं. इस घटना से सिद्ध होता है कि आज के अधिकांश रोग एलोपेथी डॉक्टरों द्वारा डराकर और हवाबाजी करके ही पैदा किये जाते है.
आज के कई गंभीर रोग तो वास्तव में किसी एक बीमारी के इलाज से पैदा होते हैं और अधिकांश प्रकरणों में देखा गया है की मूल रोग से ये रोग कई गुणा ज्यादा खतरनाक होते हैं.
एलोपैथी में प्रयुक्त प्रत्येक दवा किसी न किसी रूप में शरीर को हानि अवश्य पहुँचाती है, कुछ बीमारियों में दूसरे विकल्प कम होने से उपयोग आवश्यक हो जाता है। किन्तु सालोंसाल इलाज करवाने पर भी ये गंभीर बीमारी हुई तो क्यों?
क्या इस बात का किसी भी डॉक्टर के पास कोई जवाब है? क्या सालों तक दवाई लेने पर भी बीमार रहने की कोई जिम्मेदारी डॉक्टरों पर नहीं आती है?
सभी डॉक्टर आपस में इतने जुड़े रहते हैं कि किसी एक डॉक्टर की गलती को कोई दूसरा डॉक्टर नहीं बतायेगा. मरीज का चाहे कुछ भी होता रहे, इससे उन्हें क्या?
हमारे शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम का उचित संतुलन ही हमारे शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करता है और उसके फलस्वरूप हमारे शरीर के सभी अंगो का कार्य ठीक तरह से होता रहता है।
अत: किसी भी कारण से यदि हमारे इम्यूनिटी सिस्टम की प्रक्रिया गड़बड़ा जाए, तो हम बीमारी हो जाते हैं।
बीमारी के उपचार के लिये हमारे देश में कई तरह की चिकित्सा प्रणाली हैं, जैसे कि एलोपैथी, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, यूनानी आदि. हर चिकित्सा प्रणाली के अपने-अपने गुण-दोष होते है.
ख़ास तौर पर हम यह बात कह सकते हैं कि एलोपेथी ने सर्जरी और विभिन्न शारीरिक जांच के क्षेत्र में बहुत तरक्की की है, लेकिन एलोपेथी दवाइयों के दुष्परिणाम इतने भयानक होते हैं कि उनसे शरीर तंत्र को अकल्पनीय नुक्सान पहुँचता है और अक्सर कुछ समय बाद अधिकांश लोगों को आजीवन दवाइयां लेनी पड़ती है.
इस तरह हमारा शरीर दवाइयों का गुलाम बन घिसट-घिसट कर चलने लगता है. इस उपचार से शरीर के दूसरे अंगों पर उस दवाई का क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात की भी कोई जानकारी नहीं दी जाती है.
एलोपैथी की चिकित्सा प्रणालियाँ शरीर आश्रित न होकर बीमारी आधारित होती हैं.
1) इनमें शरीर के किसी भी अंग में हो रही किसी भी बीमारी का इलाज करने का दावा किया जाता है.
2) बाद में कोई भी समस्या होने पर कहा जाता है कि यह नई बीमारी पैदा हो गयी है. फिर उसका उपचार शुरू किया जाता है. इस तरह एक तरह की चेन-रिएक्शन शुरू हो जाती है और हम डॉक्टरों के मरीज से ग्राहक बन जाते हैं.
3) अधिकांश लोगों को अधिकांश एलोपथिक दवाइयां पूरी तरह पचती नहीं है, जिसके कारण हमारी किडनी, आतों और लीवर को बची हुई दवाइयों को बाहर निकलने में अत्यधिक परेशानी आती है. यही कारण है कि आजकल बहुत से लोगों की किडनी जल्द ही ख़राब हो जाती है, जबकि भगवान ने एक किडनी की ही जरुरत होने पर भी हमें दो किडनी दी हैं. लेकिन लीवर और ह्रदय की क्षति होने पर उसको सुधारने का का तो कोई विकल्प होता ही नहीं है.
4) हर दिन नई एलोपथिक दवाइयां बन रही हैं और अधिकांश पुरानी दवाइयों के घातक और खतरनाक परिणामों के कारण इन्हें कुछ ही वर्षों बाद बेन करना पड़ता है. वे दवाइयां तो शुरू से ही मनुष्यों को हानिकारक थी, लेकिन यह बात 10 से 20 वर्षों बाद पता चलती है, और तब इन्हें बेन किया जाता है. इस तरह मल्टीनेशनल कम्पनियां और डॉक्टर मिलकर का एलोपेथिक दवाइयों का व्यापार कर करोड़ों रुपयों की काली कमाई कर रहे हैं.
5) कई बार मल्टीनेशनल दवा कम्पनियां किसी भी नई दवाई के हानिकारक असर को जानते हुए भी जानबूझ कर अपने अनुसंधानों में हुए करोड़ो रूपये के खर्च की भरपाई के लिए इन्हें पैसे के बल पर और डॉक्टरों को मोटी रकम कमिशन के रूप में दे कर बाज़ार में उतार कर मरीजों को खिला देते हैं.
6) ये मल्टीनेशनल दवा कम्पनियां कई बार फिर दूसरी दवा का ड्रग ट्रायल करके अपनी ही पिछली दवा के अवगुण बता कर उसे बेन कर देते हैं और नई दवा को बाजार में उतार देते हैं.
7) हमारे देश में मेडिकल फील्ड में इतना बुरा हाल है कि किसी भी प्रकरण में डॉक्टर ही भगवान हैं, डॉक्टर ही जज हैं, डॉक्टर ही वकील हैं और डॉक्टर जो चाहते हैं, वही होता है. उनके ऊपर कोई नहीं हटा है, वे जो चाहे कर सकते हैं; बस मरीज ही हर द्रष्टि से मुलजिम है, मरीज ही मुजरिम है. बस अब उसे आजीवन अत्यंत पीड़ादायक सजा भुगतना ही है.
8) कई बड़े-बड़े अस्पतालों में हो रहे मरीजों के शोषण को देख कर कई बार मुझे लगता है कि गिद्धों का झुण्ड तो किसी मरे हुए प्राणी का ही मांस नोंच-नोंच कर खाते हैं, किन्तु हमारे बहुत से डॉक्टर्स तो कई तरह की जांच, सर्जरी और दवाइयों के नाम पर एक जीवित मनुष्य को ही नोंच-नोंच कर खाते हैं.
9) यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिन्हें हम साक्षात् भगवान की संज्ञा देते हैं, वे अपनी डॉक्टरी और फिर किसी विषय में विशेषज्ञता प्राप्त करने में लगे करोडो रुपयों को वसूलने में ही लगे रहते हैं. मरीजों की पीड़ा और उनके परिवार की व्यथा कथा को जानकर भी वे निर्मम ही होते हैं.
10) हमारे भारत में इस क्षेत्र में इतनी ढील है कि कई दवाइयों को आज हमारे देश को छोड़ कर इन्हें विश्व के कई देशों में बेन भी किया जा चुका है.
11) आज कई बीमारियों जैसे डायबटीज, ह्रदय रोग, ब्लड प्रेशर, कैंसर, एड्स, दमा आदि का कोई उपचार नहीं है, सिर्फ उन्हें आगे और फैलने से रोकने के लिए दवाई दी जाती हैं, जो कई बार आजीवन चलती हैं और जिसके अपने आप में बहुत से हानिकारक प्रभाव होते हैं.
12) साथ ही अधिकांश औषधियाँ उन पर लिखे मूल्य की तुलना में बेहद सस्ती होती हें. औषधि निर्माता कंपनियाँ दो तरह की दवाएं बनाती है, एक वह जिसे किसी ब्रांड नाम से बेचती है, दूसरी जेनरिक नाम से जैसे पेरासिटामोल आदि और अधिकतर में एक पेटेंट नाम भी हो सकता है। पेटेंट नाम से बेची जाने वाली दवा चार या उससे कई गुना अधिक मूल्य तक की हो सकती है, जबकी जेनरिक नाम से बेची जाने वाली दवा पर भी प्रिंट रेट अक्सर दो से चार गुना होता है।
1. थोक विक्रेताओं द्वारा रिटेलर या किसी चिकित्सालय स्टोर को प्रिंट रेट से काफी कम में ही दवाइयां बेची जातीं हें। यही कारण है कि आजकल लगभग हर नर्सिंग होम/ चिकित्सालय या चिकित्सक ने अपना अलग मेडिकल स्टोर खोला हुआ है, और चिकित्सक वे नाम ही प्रेस्क्राइब करते हैं, जो उनके यहाँ पर ही मिलती हैं.

तपेदिक या टी.बी. में रोगी को टी.बी.होने पर हल्का बुखार रहना, धीरे-धीरे वजन कम होना, कमजोरी लगना, खाँसी, कभी-कभी मुँह से खून गिरना, हड्डी और आँतों की टी.बी., आँतों में सुजन, यूरिन में जलन आदि होता है. इसका उपचार इस तरह का होता है -
1. HSL कम्पनी की होम्योकाम्ब नं. 30 की दो गोली दिन में तीन से चार बार तक तीन माह तक तक ले,
2. साथ ही इसी कम्पनी की DROX 28 की 10 बूँद दिन में दो से तीन बार खाने के बाद लें. इसे हर माह में एक हफ्ते के लिए ही लें और सिर्फ तीन माह तक ही दें.
3. इसके साथ ही बायो काम्ब न. 32 की 6 गोली दिन में 4 बार चूंस लेना चाहिये.
4. हर माह एक बार ट्यूबरकुलाईनम 200 या 1M का एक डोज ले. जिस दिन यह दवा लें, उस दिन और कोई दवा न लें. इसे भी सिर्फ तीन बार तीन माह में ही लें.
5. आर्सेनिक आयोडाइड 6 को दिन में तीन बार हर माह में एक हफ्ते के लिए ही लें. इसे भी सिर्फ तीन माह तक ही लें.
बच्चों में यह प्राइमरी काम्प्लेक्स या बच्चों की टी.बी. के रूप में होता है. एलोपैथी में बच्चों के डॉक्टर के अनुसार अधिकाँश बच्चों को प्राइमरी काम्प्लेक्स या बच्चों की टी.बी. हो जाती है और इसमें उन्हें 9 माह से 15 माह तक दवा दी जाती है. बच्चों की टी.बी. के उपचार के लिए दवा को निम्नानुसार लेना उचित होगा –
1. आप HSL कम्पनी की होम्योकाम्ब नं. 30 की एक गोली दिन में तीन से चार बार तक तक दें.
2. इसके साथ ही बायो काम्ब न. 32 की 4 गोली दिन में 4 बार चूंसने देना चाहिये.
3. इन दोनों दवा को दो से तीन माह तक दें.
• शरीर की ओवरहालिंग और रिचार्जिंग –
हमेशा स्वस्थ रहने के लिए कोई भी व्यक्ति या परिवार अगर निम्न उपचार द्वारा अपने शरीर की ओवरहालिंग और रिचार्जिंग करता है और खान-पान तथा एक्सरसाइज भी निम्न अनुसार लेता है, तो उसे कभी भी कैंसर, डायबटीज, ह्रदय रोग, लिवर रोग, किडनी फेल्यर, टी.बी., फेफड़े के रोग, चर्म रोग आदि कोई भी गंभीर बीमारी नहीं होगी और वह आजीवन सपरिवार स्वस्थ, प्रसन्न और खुशहाल रह सकेगा -
1. सबसे पहले आप सुबह 7 बजे कुल्ला करके सल्फर 200 को, फिर दोपहर को आर्निका 200 और रात्रि को खाने के एक से दो घंटे बाद या नौ बजे नक्स वोम 200 की पांच-पांच बूँद आधा कप पानी से एक हफ्ते तक ले, फिर हर तीन से छह माह में तीन दिन तक लें.
2. इन दवाइयों को लेने के एक हफ्ते बाद हर 15-15 दिन में सोरिनम 200 का मात्र एक-एक पांच बूँद का डोज चार बार तक ले, ताकि आपके शरीर के अंदर जमा दवाई और दूसरे अन्य केमिकल और पेस्टीसाइड के विकार दूर हो सकें और आपके शरीर के सभी ह्रदय, फेफड़े, लीवर, किडनी आदि मुख्य अंग सुचारू रूप से कार्य कर सकेंगे. बच्चों और ज्यादा वृद्धों में ये सभी दवा 30 की पावर में दें.
3. अगर कब्ज रहता हो, तो होम्योलेक्स या HSL कम्पनी की होम्योकाम्ब नं. 67 की एक या आधी गोली रोज रात एक सफ्ताह तक 9.30 बजे लें. इसके बाद हर व्यक्ति को चाहिए कि वह इसे हर हफ्ते एक या आधी गोली रात्रि 9.30 बजे ले.
4. आप सुबह दो से चार गिलास कुनकुना पानी पीकर 5 मिनिट तक कौआ चाल (योग क्रिया) करें.
5. साथ ही पांच या अधिक से अधिक दस बार तक सूर्य नमस्कार करें. फिर 200 से 500 बार तक कपाल-भांति करें. इसके बाद प्राणायाम करें.
6. रोज सुबह और रात को 15-15 मिनिट का शवासन भी करें.
7. फिर एक घंटे बाद अगर सूट करे, तो कम से कम एक माह तक नारियल पानी लें. या फिर इसे दोपहर चार बजे भी ले सकते हैं.
8. सुबह और शाम को अगर संभव हो, तो एक घंटा अवश्य घूमें.
9. रात को सोते समय अष्टावक्र गीता में बताये अनुसार दो मिनिट के लिए “मैं स्वयं ही तीन लोक का चैतन्य सम्राट हूँ” ऐसा जाप करें.
10. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के चार्ज किये और मिलाकर बने चुम्बकित जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में रोज दिन में 3 बार उपयोग करें.
11. रोज सुबह उच्च शक्ति चुम्बकों को हथेलियों पर 15 मिनिट से आधे घंटे के लिए लगायें और रात्रि को खाने के दो घंटे बाद पैर के तलुवों पर 15 मिनिट से आधे घंटे के लिए दक्षिणी चुम्बक को बायीं ओर और उत्तरी चुम्बक को दाहिनी ओर लगाये.
12. गेंहू, जौ, देसी चना और सोयाबीन को सम भाग मिलाकर पिसवा ले और उसकी रोटी सादे मसाले की रेशेदार सब्जी से खाएं. दाल का प्रयोग कम कर दें.
13. बारीक आटे व मैदे से बनी वस्तुएं, तली वस्तुएं एव गरिष्ठ भोजन का त्याग करे।
14. सुबह-शाम चाय के स्थान पर नीबू का रस गरम पानी में मिला कर पिएं।
15. खाने में सिर्फ सेंधे नमक का प्रयोग करें.
16. रात को सोने से पहले पेट को ठण्डक पहुँचायें। इसके लिए खाने के चार घंटे बाद एक नेपकिन को सामान्य ठन्डे पानी से गीली करके पेट पर रखें और हर दो मिनिट में पलटते रहें. 15 मिनिट से 20 मिनिट तक इसे करें.
17. मैथी दाना 250 ग्राम, अजबाइन 100 ग्राम और काली जीरी 50 ग्राम को पीस कर इस चूर्ण को कुनकुने पानी से रात्रि 9.30 बजे एक चम्मच लें.
18. रात्रि को खाना और जमीकंद खाना, शराब पीना व धूम्रपान अगर करते हों या तम्बाखू खाते हों, तो इन्हें बंद करें. शाकाहारी भोजन ही लें.
19. अपने शरीर की सालाना ओवरहालिंग के लिए साल में एक बार अपने आसपास के किसी भी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में जाकर वहां का दस दिन का कोर्स करें.
20. अपने घर के बुजुर्ग लोगों की रोज एक घंटे के लिये सेवा और मदद करें.
21. अपने आसपास की झोपड़पट्टी में रहने वाले किसी गरीब व्यक्ति की हर हफ्ते जाकर मदद करें.
22. अध्यात्मिक कैप्सूल के रूप में मेरी पुस्तक मुक्तियाँ की एक-एक मुक्ति तीन माह तक रोज पढ़ें. इससे आपकी नेगेटिव एनर्जी कम होगी और पॉजिटिव एनर्जी बहुत तेजी से बढेगी.
23. मेरी स्वस्थ रहे, स्वस्थ करें, मुक्तियाँ और अन्य कई पुस्तकों को मेरे Samadhan समाधान ग्रुप से निशुल्क डाउन लोड करें. आप चाहे तो अपना email address मेरे मेसेज बाक्स में दे दे, तो मैं आपको डायरेक्ट मेल कर दूंगा.
24. होम्योकाम्ब और बायोकाम्ब नम्बर से मिलती हैं. इनके नम्बर ध्यान से लिखें. साथ ही होम्योकाम्ब और बायोकाम्ब में कन्फ्यूज न हों. इन्हें साफ़-साफ़ लिखें.
25. किसी भी गंभीर मरीज को किसी विशेषज्ञ डॉक्टर को तत्काल दिखायें.
26. होम्योपैथी की दवाइयों को मुंह साफ़ करके कुल्ला करके लेना चाहिए. इनको लेते समय किसी भी तरह की सुगन्धित चीजों और प्याज, लहसुन, काफी, हींग और मांसाहार आदि से बचे और दवा लेने के आधा घंटा पहले और बाद में कुछ न लें.
27. हर दिन नई एलोपथिक दवाइयां बन रही हैं और अधिकांश पुरानी दवाइयों के घातक और खतरनाक परिणामों के कारण इन्हें कुछ ही वर्षों में भारत को छोड़ कर विश्व के कई देशों में बेन भी किया जा रहा है.
28. हमें भी चाहिये कि हम मात्र एलोपथिक दवाइयों पर ही निर्भर न रहकर योगासन, सूर्य किरण भोजन, अमृत-जल या सूर्य किरण जल चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, बायोकेमिक दवाइयाँ आदि निर्दोष प्रणालियों को अपना कर खुद और अपने परिवार को सुरक्षित करें.
29. इस तरह दवा मुक्त विश्व का निर्माण करना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य है और इसके लिए आप सभी का सहयोग चाहिये, जो आप मेरे इन सन्देशों को दूर-दूर तक फैला कर मुझे दे सकते हैं.
30. मेरी सभी स्वास्थ्य सम्बन्धी, लोक कल्याण, मानवाधिकार और आध्यात्मिक पोस्ट और पुस्तकों को देखने और उन्हें डाउनलोड करने के लिए आप मेरे ग्रुप “HEALTH CARE स्वस्थ रहो, स्वस्थ करो” और “Samadhan समाधान” से जुड़ सकते हैं और अपने दोस्तों को भी जोड़ सकते हैं.
31. मेरे नये आध्यात्मिक ग्रुप “कहान गुरु आस्था परिवार Kahan Guru Aastha Parivar” में आप सभी का स्वागत है. अतः मेरे इस इस शाश्वत कल्याणकारी ग्रुप से खुद भी जुड़े और अपने संगी-साथी को भी जोड़कर उनका भी अपने निज-परमात्मा के चैतन्य-चमत्कार से परिचय करवाएं.

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