“मास्टर मैं आपको तीरंदाजी मुकाबले के लिए चुनौती देता हूँ । “, नवयुवक बोला ।
मास्टर ने नवयुवक की चुनौती स्वीकार कर ली ।
मुक़ाबला शुरू हुआ ।
नवयुवक ने अपने पहले प्रयास में ही दूर रखे लक्ष्य के ठीक बीचो -बीच निशाना लगा दिया ।
और अगले निशाने में उसने लक्ष्य पर लगे पहले तीर को ही भेद डाला ।
अपनी योग्यता पर घमंड करते हुए नवयुवक बोला, ” कहिये मास्टर, क्या आप इससे बेहतर करके दिखा सकते हैं ? यदि ‘हाँ ‘ तो कर के दिखाइए, यदि ‘नहीं ‘ तो हार मान लीजिये ।
मास्टर बोले, ” पुत्र, मेरे पीछे आओ !”
मास्टर चलते-चलते एक खतरनाक खाई के पास पहुँच गए ।
नवयुवक यह सब देख कुछ घबड़ाया और बोला, “मास्टर, ये आप मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं ? “
मास्टर बोले, ” घबराओ मत पुत्र, हम लगभग पहुँच ही गए हैं, बस अब हमें इस ज़र्ज़र पुल के बीचो -बीच जाना है । “
नवयुवक ने देखा की दो पहाड़ियों को जोड़ने के लिए किसी ने लकड़ी के एक कामचलाऊ पुल का निर्माण किया था, और मास्टर उसी पर जाने के लिए कह रहे थे।
मास्टर पुल के बीचो – बीच पहुंचे, कमान से तीर निकाला और दूर एक पेड़ के तने पर सटीक निशाना लगाया ।निशाना लगाने के बाद मास्टर बोले, ” आओ पुत्र, अब तुम भी उसी पेड़ पर निशाना लगा कर अपनी दक्षता सिद्ध करो । “
नवयुवक डरते -डरते आगे बढ़ा और बेहद कठिनाई के साथ पुल के बीचों – बीच पहुंचा और किसी तरह कमान से तीर निकाल कर निशाना लगाया पर निशाना लक्ष्य के आस -पास भी नहीं लगा ।
नवयुवक निराश हो गया और अपनी हार स्वीकार कर ली ।
तब मास्टर बोले, ” पुत्र, तुमने तीर -धनुष पर तो नियंत्रण हांसिल कर लिया है पर तुम्हारा उस मन पर अभी भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को भेदने के लिए आवश्यक है। पुत्र, इस बात को हमेशा ध्यान में रखो कि *जब तक मनुष्य के अंदर सीखने की जिज्ञासा है तब तक उसके ज्ञान में वृद्धि होती है लेकिन जब उसके अंदर सर्वश्रेष्ठ होने का अहंकार आ जाता है तभी से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है* ।“
नवयुवक मास्टर की बात समझ चुका था, उसे एहसास हो गया कि *उसका धनुर्विद्या का ज्ञान बस अनुकूल परिस्थितियों में कारगर है और उसे अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।* उसने तत्काल ही अपने अहंकार के लिए मास्टर से क्षमा मांगी और सदा एक शिष्य की तरह सीखने और अपने ज्ञान पर घमंड ना करने की सौगंध ली ।
दोस्तों, बहुत बार हम अपनी कई जिज्ञासाओं का समाधान करने में सिर्फ इसलिए संकोच करते हैं कि लोग क्या सोचेंगे वे हमें अज्ञानी न समझ लें और हमारे दिल की बात जुबाँ तक आते-आते रुक जाती है जबकि सर्वज्ञाता बनना किसी के भी लिए असंभव है। किसी ने क्या खूब कहा है- यदि आप अपनी जिज्ञासा समाधान हेतु प्रश्न करते हैं तो महज चंद पल के लिए अज्ञानी साबित होते हैं, परंतु यदि नहीं करते तो हमेशा के लिए अज्ञानी बन जाते हैं। इसलिए जब भी कोई स्वस्थ, रचनात्मक व स्तरयुक्त जिज्ञासा आपके मन में उठे, उसी क्षण उसका समाधान करने का प्रयास करें।
अहंकार को एकदम छोड दीजिये । ज्ञान का क्षेत्र बेहद व्यापक है। इस अविरल छलकती ज्ञान गंगा में से अपने लिए जितने सार्थक मोती समेट सकें, समेटने की कोशिश कीजिए।
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