केवल पेट भरने के लिए जीवों की हिंसा मत कर

एक बार बुद्ध और उनके शिष्य घूमते-घामते कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने देखा कि एक साँप को बहुत-सी चींटियाँ चिपककर काट रही थीं और साँप छटपटा रहा था।

 शिष्यों ने पूछाः "भंते ! इतनी सारी चींटियाँ इस एक साँप को चिपकर काट रही हैं और इतना बड़ा साँप इन चीटियों से परेशान होकर छटपटा रहा है, ऐसा क्यों? क्या यह अपने किन्हीं कर्मों का फल भोग रहा है?"

 बुद्धः "हाँ, कुछ साल पहले जब हम इस तालाब के पास से गुजर रहे थे, तब एक मछुआ मछलियाँ पकड़ रहा था। हमने उसे कहा भी था कि पापकर्म मत कर। केवल पेट भरने के लिए जीवों की हिंसा मत कर लेकिन उसने हमारी बात नहीं मानी। वही अभागा मछुआ साँप की योनि में जन्मा है और उसके द्वारा मारी हुई मछलियाँ ही चींटिया ही बनी हैं और वे अपना बदला ले रही हैं। मछुआ निर्दोष जीवों की हिंसा का फल भुगत रहा है।"

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